कहीं कोई दस्तगीर अब नज़र नहीं आता
शख़्स वो बेनज़ीर अब नज़र नहीं आता।
मंज़िल की ओर चला था, जो एक मुसाफ़िर कभी
खो गया वो राहगीर अब नज़र नहीं आता।
था जिसकी दुआओं में, असर भी शिद्दत भी
कहाँ गया वो फ़क़ीर अब नज़र नहीं आता।
एक अर्से से सींचा जिसे, ज़ख्मों ने अपने लहू से
शायर वो शबगीर अब नज़र नहीं आता।
बिक जाते हैं लोग आजकल, कौड़ियों के भाव में
पहले जैसा ज़मीर अब नज़र नहीं आता।
इंसानियत को सही राह पर ले जाए जो
ऐसा तो कोई मीर अब नज़र नहीं आता।
वतन के रहनुमाओं की मेहरबानी है कि, वतन
पहले जैसा कबीर अब नज़र नहीं आता।
लुट चुकी है मेरे दिल की सल्तनत ‘इरफ़ान’
वारिस न कोई वज़ीर अब नज़र नहीं आता।।
शब्दार्थ:-
दस्तगीर – मददगार
बेनज़ीर – अद्वितीय
शबगीर – रात को इबादत करने वाला
ज़मीर – अंतरात्मा
मीर – नेता
कबीर – महानज़मीर – अंतरात्मा
सल्तनत – साम्राज्य
वारिस – उत्तराधिकारी
वज़ीर – मंत्री