यक़ीनन कोई और बनकर जी रहा है तू
यह पता है तुझे, फिर भी सह रहा है तू
यक़ीनन कोई और बनकर जी रहा है तू।
एक अर्से से मुकद्दर, अजीब खेल खेलता आया है
तू ही तुझ में ना रहा, अब तो कोई और नुमायाँ है।
अपनों के लिए क्यों अपने आप को भूल रहा है
किस्मत और कोशिश के दरमियान झूल रहा है।
सब पता है तुझे, कि तू किस चीज के लिए बना है
मासूम मोहब्बत के उस, गाढ़े लाल ख़ून में सना है।
सब तो खुशियां मना रहे हैं, पर तू खुश नहीं है
सब तो हासिल है लेकिन, तू खुद, खुद नहीं है।
यह कैसी तलब है, जो कभी खत्म ही नहीं होती
यह कैसी तड़प है, जो कभी भस्म ही नहीं होती।
जब-जब तू आगे बढ़ा, खींचकर यह ज़िन्दगी पीछे ले आई
जब-जब तू ऊपर चढ़ा, घसीटकर यह फिर नीचे ले आई।
यक़ीनन कोई और बनकर जी रहा है तू
खुद में ही अजनबी की तरह रह रहा है तू
यक़ीनन कोई और बनकर जी रहा है तू।।
-RockShayar