सुना है कि रात को कभी नींद नहीं आती
बस यहीं जानने के लिए कभी सोया नहीं
अंदर ही अंदर, बहुत कुछ है जो बदल जाता है
ज़िन्दगी का सूरज भी बिना बताए ढ़ल जाता है
सुकून की तलाश में, ये पलकें खुली रहती हैं
कभी सो जाती है, तो कभी झपकती रहती हैं
चाँद की तरह हर रात, कोई ना कोई तो जलता है
तब कहीं जाकर इस, दिल का दरवाजा खुलता है
करवटें बदल बदल कर, यूं हर शब गुज़र जाती है
गुज़रे हुए लम्हों में, बातें वो बेनज़ीर नज़र आती है
ख़्वाब में सदा जो दिखता है, सच कहाँ वो होता है
एक तसव्वुर की तलाश में, दिल इतना क्यूं रोता है
अंधेरे के आगोश में ही तो, उजाला ये तमाम रहता है
चुपचाप सहता है सितम, किसी से नहीं कुछ कहता है
सुना है कि दर्द में भी मुस्कुराना पड़ता है
बस यहीं जानने के लिए कभी रोया नहीं ।