लफ़्ज़ों में नुमायां दर्द को हाल-ए-दिल न समझना
ज़िन्दगी के काग़ज़ पर खुशी लिखना सीख चुके है
हालाँकि वक़्त बहुत लगा है, इस फ़न को पाने में
और एक उम्र गुज़र गयी है, खुद को आज़माने में
पहले हम हैरान होते थे, अब वो हैरान होते हैं
देखकर यह तलब अब, लफ़्ज़ परेशान होते हैं
ख़्वाब सब महताब हुए, ख़्वाहिशों ने लिखे हैं ख़त
रूह को भी आजकल इन सबकी, लग गयी है लत
हयात के तन्हा सफ़र में, साथ चली हरघड़ी क़लम
इंसानी रिश्तों से परे, कुछ ख़ास है यह मेरी क़लम
कहीं भी, कभी भी, कुछ भी, कैसा भी हो लिखना
ख़याल मज़बूत हो वो, याद बस इतना ही रखना
हद न हो जिसकी कोई, उस मुकाम तक पहुँचना है
बाज़ार की ज़ीनत और तकब्बुर से हमेशा बचना है
नज़्मों में बयां दर्द को हाल-ए-दिल न समझना
ज़िन्दगी के हाथ पर खुशी लिखना सीख चुके है।
@RockShayar