दुआओं में मांगा जिसे, क्या वहीं हो तुम
शिद्दत से चाहा जिसे, क्या वहीं हो तुम
रातों में ढ़लते हुए, जलते हुए, मचलते हुए
ख़्वाबों में देखा जिसे, क्या वहीं हो तुम
क़लम को थामे हुए, दर्द वो सब आधे हुए
ख़यालों में सोचा जिसे, क्या वहीं हो तुम
पहली ही नज़र में, दर्द की भरी दोपहर में
मन ने मेरे छुआ जिसे, क्या वहीं हो तुम
पलकों के इस घर में, अश्क़ों के सफर में
सीने में छुपाया जिसे, क्या वहीं हो तुम
बनती हुई बिगड़ती हुई, रूठी हुई तक़दीर में
रब ने मेरे लिखा जिसे, क्या वहीं हो तुम।