चायनुमा चाहतों के किस्से भी कितने अजीब हैं
चीनी जिनमें के ना कम होनी चाहिए, ना ज्यादा
दिल के बागानों में चाय पत्ती उग आती है
तोड़ने में जिसको, सारी उम्र बीत जाती है
एहसास की अदरक जब अच्छे से कुटती है
मटमैला अर्क़ लिए वो सफेद रूह में घुलती है
यादों के चूल्हे पर, ख़्वाहिशों की केटली में
हसरतें उबलती रहती हैं, मन की पोटली में
इश्क़ की वो इलायची, जब कभी मिल जाए
पीने वालों का तो फिर, चेहरा ही खिल जाए
ख़ामोशी का कप जब लरज़ते लबों को चूमता है
सर्द सुबह में पीकर फिर चाय, ये दिल झूमता है
ज़िन्दगी के सिरदर्द का, पुख़्ता इलाज है चाय
चुटकी में बनाकर मूड, नींद को कर देती है बाय
चायनुमा चाहतों के किस्से भी कितने अजीब हैं
चीनी जिनमें के ना कम होनी चाहिए, ना ज्यादा ।