इस बार तो ईद पर गले लगाओगे ना पापा
या हर बार की तरह जज़्बात छुपाओगे पापा
क्यों अपने दिल की बात नहीं कहते हो कभी
खुद में ही गुम अक्सर ख़ामोश रहते हो यूँही
वक़्त तो गुज़र रहा है, गुज़र जाएगा एक दिन
गुज़रा हुआ वक़्त बहुत याद आएगा एक दिन
परिवार टूट रहा है, हर शख़्स रूठ रहा है
अपनो से अपनो का साथ अब छूट रहा है
अपनी ज़रूरतों को मारकर हमारी ज़रूरतें पूरी करते हो
और औलाद के प्यार की खातिर ज़िन्दगी भर तरसते हो
बहुत हो चुका बस, अब और नहीं सहेंगे हम
जैसे रहते थे बचपन में, वैसे साथ रहेंगे हम
बच्चा हूँ आपका, तो आपसे ही तो कहूँगा ये सब
हर मुश्किल को जीतकर, नाम रौशन करूँगा अब
इस बार तो ईद पर गले लगाओगे ना पापा
या हर बार की तरह जज़्बात छुपाओगे पापा ।।
Irfan