हादसों के बाद भी खुद को वो बदलते नहीं
यक़ीन मानिए कुछ लोग कभी भी सुधरते नहीं
एहसास जब भी होता है, मालूम तब ये चलता है
के मरते तो इन्सान हैं, एहसास कभी मरते नहीं
भर जाता होगा बेशक, वक़्त के साथ हर ज़ख्म
अपनों के दिए ज़ख्म तो इतनी जल्दी भरते नहीं
तलाशते हैं खुद को जो, खुदगर्ज़ कहलाते हैं वो
ख़ामोश रहते हैं अक्सर, बात ज्यादा करते नहीं
पीठ पीछे बुराई करना, और सामने बड़ाई करना
ऐसे नामुरादों की तो, परवाह हम भी करते नहीं
सुन लो ऐ दुश्मनों, चाहे जितना भी ज़ोर लगा लो
एक अल्लाह के अलावा हम किसी से डरते नहीं ।