कई नज़्मों का क़त्ल किया
और कई ग़ज़लों का लहू बहाया
तब जाकर ये समझ में आया
मैंने खुद को कितना सताया
मैंने खुद को कितना मिटाया ।
दर्द का वो गुबार लफ़्ज़ों पर उडेला
क़लम को थामे चलता रहा मैं अकेला
सफ़र के दरमियाँ कई सफ़र मिले
कहने को यूँ तो हमसफ़र मिले
कई रातों में खुद को जलाया
और कई दिनों का दीप बुझाया
तब जाकर ये समझ में आया
मैंने खुद को कितना सताया
मैंने खुद को कितना मिटाया ।
ख़ामोशी में हर जवाब पाया
थोड़ा नहीं बेहिसाब पाया
बेरहम बेदर्द बेशुमार होकर
संगदिल होने का खिताब पाया
कई आहों को दफ़नाया
और कई अहसासों का क़त्ल छुपाया
अब जाकर ये समझ में आया
मैंने खुद को कितना सताया
मैंने खुद को कितना मिटाया ।।
Copyright © 2015
RockShayar Irfan Ali Khan
All rights reserved.
rockshayar.wordpress.com