बिना जज़्बात के लफ़्ज़ ये बिना मोती के सदफ़ हैं
बेसलीक़ा बातों का जैसे कोई सलीक़ेदार लक़ब है
ग़ैरों की क्या बात करे, खुद से ही शुरूआत करे
अदब की इस दुनिया में हर शख़्स ही बेअदब है ।
दिन गुज़रे साल बीते, तब कहीं यह पता चला
के ये जो दर्द है, दर्द नहीं बल्कि रूह की रसद है ।
लाख टोके बज़्म चाहे, सुनता नहीं मैं किसी की
बहर में नहीं है जो महबूब मुझ को वो ग़ज़ल है ।
जला देना डायरी मेरी, गर मौत चाहो तुम मेरी
मुझ में मेरे होने की बाक़ी अब तो यहीं सनद है ।
शब्दकोश:-
सदफ़ – सीपी
बेसलीक़ा – बेढंगा
सलीक़ेदार – भद्र, शिष्टापूर्ण
लक़ब – पदवी, ओहदा, खिताब, उपाधि
अदब – सम्मान, साहित्य
शख़्स – व्यक्ति
बेअदब – असभ्य, अभद्र
शब – रात
रसद – आहार, राशन
बज़्म – सभा
बहर – शब्द मापनी
महबूब – प्रिय
ग़ज़ल – उर्दू-फ़ारसी में पद्य का एक रूप
सनद – सबूत, प्रमाण