कोई पागल कहता है, कोई नादान समझता है
हर शख़्स यहाँ मुझे खुद सा इंसान समझता है ।
वो नज़रअंदाज़ करता है मुझे, कुछ इस तरह से
जैसे घर में रखा पुराना कोई सामान समझता है ।
कीमत चुकाई है मैंने, चट्टानों की तरह बनने में
और वो है कि खुदगर्ज़, नाफ़रमान समझता है ।
नहीं रखता कोई राब्ता, उस मुसाफ़िर से कभी मैं
जो दिल को मेरे किराये का मकान समझता है ।
मत जलाओ तुम घर अपने, नफ़रत के शोलों से
मोहब्बत की ज़ुबान तो हर बेज़ुबान समझता है ।
क़त्ल किया था जिसने इक रोज मेरे यक़ीन को
आज तलक वो शख़्स मुझे इरफ़ान समझता है ।।
– राॅकशायर इरफ़ान अली ख़ान
शब्दकोश:-
खुदगर्ज़ – स्वार्थी
नाफ़रमान – कहना नहीं मानने वाला
राब्ता -संबंध
मुसाफ़िर – यात्री
शख़्स – व्यक्ति