इतना तो मेरा भी मुझ पर हक़ बनता है,
मन की सोच का दायरा जहाँ तक बनता है ।
कोशिश करो गर दिल से तो क्या नहीं होता यहाँ,
जमा लो कदम जहाँ वहीं पर फलक़ बनता है ।
कई रात ठिठुरता है, खारापन लिए ये पानी
तब कहीं वो जाकर झील में नमक बनता है ।
हर सफ़र की यहाँ, दास्तान है बस इतनी सी
दर्द ही आख़िर इस ज़िन्दगी का सबक बनता है ।
कमी नहीं किसी चीज़ की, रब के दरबार में
रोकर तो माँगो कभी, मुकद्दर बेशक बनता है ।
देर लगी, पर अहसास हुआ ये अब इरफ़ान
अपनी ज़िन्दगी पर अपना भी तो हक़ बनता है ।।
@rockshayar.wordpress.com