काग़ज़ क़लम दवात कुछ भी नहीं हैं,
बाक़ी मुझमें जज़्बात कुछ भी नहीं हैं ।
दिल का मौसम, जाने कब होगा सुहाना
बिन बादल बरसात कुछ भी नहीं हैं ।
वक्त की आँखों में ठहर गया है वक्त कहीं,
अलविदा या मुलाक़ात कुछ भी नहीं हैं ।
ग़ैरों के हवाले किया है जब से खुद को,
खुद से खुद की वो बात कुछ भी नहीं हैं ।
साँसों की शतरंज पर बिछी है ज़िंदगी,
बिसात शह और मात कुछ भी नहीं हैं ।
बर्बाद हो चुका पूरी तरह से इरफ़ान,
मुझमें मेरी अब ज़ात कुछ भी नहीं हैं ।।
#RockShayar