रो रोकर भी जब दिल ना भरे
बाद उसके ये दिल क्या करे ।
हद से ज्यादा जब किसी की याद सताये
खुद से ज्यादा खुद को जब कोई और भाये
रूह को जलाकर भी जब ये दिल ना भरे
बाद उसके ये दिल क्या करे
रो रोकर भी जब दिल ना भरे
बाद उसके ये दिल क्या करे ।
बीते लम्हों की कसक जब सीने में गहराये
फिर हौले हौले से वो पलकों पर उतर आये
दिल को तङपाकर भी जब ये दिल ना भरे
बाद उसके ये दिल क्या करे
रो रोकर भी जब दिल ना भरे
बाद उसके ये दिल क्या करे ।
जख्म जब कभी हरे हो जाते हैं
वक्त के साथ और गहरे हो जाते हैं
खुद को मिटाकर भी जब ये दिल ना भरे
बाद उसके ये दिल क्या करे ।
रो रोकर भी जब दिल ना भरे
बाद उसके ये दिल क्या करे ।।
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Irfan Ali Khan
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