खुद से भी कभी इश्क़ कर
खुद पे भी कभी कर यक़ीं
आसमां भी तुझ में दिखे
तुझ में खिले तेरी जमीं ।
ग़ैरों से मोहब्बत में तो, चाँद तारे तोङ लाता है
और खुद की जब बात आए, तो बेवजह शर्माता है
जाने क्यूँ ये बात कभी, तू समझ नहीं पाता है
खुद कंगाल होकर, मोहब्बत ग़ैरों पर लुटाता है
खुद से भी कभी इश्क़ कर
खुद पे भी कभी कर यक़ीं
ज़िंदगी तुझसे कहे ये
आकर गले तू लग कभी
खुद से भी कभी इश्क़ कर
खुद पे भी कभी कर यक़ीं
आसमां भी तुझ में दिखे
तुझ में खिले तेरी जमीं ।
कुछ पल मिले हैं तुझको, क्यूँ तू इनको गंवाता है
अच्छा बुरा वक्त है मेहमां, एक दिन गुज़र जाता है
देखकर भी यह हकीकत, अनदेखी कर जाता है
शीशे के महल में अक्सर, खुद से ही घबराता है
खुद से भी कभी इश्क़ कर
खुद पे भी कभी कर यक़ीं
आसमां भी तुझ में दिखे
तुझ में खिले तेरी जमीं ।।
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Irfan Ali Khan
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