सुना है तू दिलों के हाल जानता है
मुझको मुझसे ज्यादा पहचानता है
बस इतना बता दे मुझको मेरे मौला
ये मन मेरी क्यों नहीं मानता है
सुना है तू दिलों के हाल जानता है
मुझको मुझसे ज्यादा पहचानता है ।
इबादत करके तेरी मैं क्या जताऊ
रंज़-ओ-ग़म तुम्हें अपना कैसे बताऊ
दर्द बहुत उठता है सीने में या रब
खुद को अब और कितना सताऊ
बस इतना बता दे मुझको मेरे मौला
खुद को अब मैं कैसे समझाऊं ।
सुना है तू दिलों के हाल जानता है
मुझको मुझसे ज्यादा पहचानता है
बस इतना बता दे मुझको मेरे मौला
ये मन मेरी क्यों नहीं मानता है ।
तमाम कोशिश करके मैं हार गया
आँखों में है मगर वो इक़रार बयां
सुन ले खुदाया तू अब मेरी पुकार
खुद से लङते लङते मैं हार गया
बस इतना बता दे मुझको मेरे मौला
कहाँ इस ज़िंदगी का क़रार गया ।
सुना है तू दिलों के हाल जानता है
मुझको मुझसे ज्यादा पहचानता है
बस इतना बता दे मुझको मेरे मौला
ये मन मेरी क्यों नहीं मानता है ।।
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Irfan Ali Khan
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