ख़ामोश नदी सी बहती हुई, एक आवाज़ सुनी है
बाद उसके ही आज मैंने, फिर ये कहानी बुनी है
लबों पर कुछ लफ़्ज़ रखे हैं, चंद शबनमी क़तरे
सुनकर जिन्हें ये दिल कह उठे, चाँद से है उतरे
परत दर परत खुलती गई, कानों में घुलती गई
आवाज़ की रूह फिर, अल्फ़ाज़ से धुलती गई
नूर के वो बादल कभी, बरसे जो सहरा में कहीं
गूँज रही हैं सदाएं सभी, वो लम्हा ठहरा है वहीं
शहद सी वो मीठी बोली, उर्दू की तरह लागे है
जाने किसके पीछे हर पल, मन ये मेरा भागे है
सुने हैं सरल अंदाज़ में, ज़िंदगी के सुनहरे किस्से
देखे हैं फ़क़त आवाज़ ने, उजालों के अंधेरे हिस्से
ख़ामोश वक्त सी बहती हुई, एक आवाज़ सुनी है
बाद उसके यूँ आज मैंने, फिर ये कहानी बुनी है ।।