ना दुआ का अमल आता है, ना इबादत का शऊर
गुनाह करने की मुसल्सल, अपनी आदत से हूँ मज़बूर
वो जो दिलों के हाल जानता है
मुझको मुझसे ज्यादा पहचानता है
अता किया है उसी ने ये हुनर
के दिल भी अब तो दिल की मानता है
ना इश्क़ का शग़ल पता है, ना मोहब्बत का दस्तूर
वफ़ा करने की मुसल्सल, अपनी आदत से हूँ मज़बूर
वो जो ख़ामोश किस्से कहता है
मुझमें मुझसे ज्यादा कहीं रहता है
ज़ुदा किया है उसी ने इस क़दर
के जिस्म भी अब तो रूह सा बहता है
ना मौत की शक़ल पता है, ना ज़िंदगी का वज़ूद
जीने मरने की मुसल्सल, अपनी आदत से हूँ मज़बूर
वो जो हर जगह नुमायाँ है
तुझमें मुझमें सब में समाया है
पैदा किया है उसी ने ये बशर
के हर ज़र्रा यहाँ पर उसी की माया है
ना दुआ का अमल आता है, ना इबादत का शऊर
गुनाह करने की मुसल्सल, अपनी आदत से हूँ मज़बूर ।।