Month: July 2015
“ज़िंदगी भी अब तो यूँ, बर्बाद अच्छी लगती है”
तुमसे ज्यादा तुम्हारी याद अच्छी लगती है
मुझको दर्दे-दिल की फ़रियाद अच्छी लगती है
याद आना भी तेरा वो आख़िर, कैसी याद है ?
कि लम्हा गुज़र जाने के बाद अच्छी लगती है
सुकून मिलता है सदा, औरों को देकर यहाँ
मदद हो चाहे कैसी भी, इमदाद अच्छी लगती है
नज़र आने लगे, जिस्मो-जां ये ज़ुदा ज़ुदा
फिर भी जाने क्यूँ, अज़दाद अच्छी लगती है
ख़ुद को पाकर हमने, सीखा है यही ‘इरफ़ान’
ज़िंदगी भी अब तो यूँ, बर्बाद अच्छी लगती है ।।
—————————
#रॉकशायर ‘इरफ़ान’ अली खान
दर्दे-दिल – पीड़ित ह्रदय
फ़रियाद – प्रार्थना
लम्हा – पल
इमदाद – सहायता
जिस्मो-जां – शरीर और आत्मा
ज़ुदा ज़ुदा – अलग अलग
अज़दाद – परस्पर विरोधी
“कौन हो तुम”
कौन हो तुम ? कहाँ रहती हो ?
मुझमें हर दफ़ा, यूँही बहती हो
मुद्दत से ज़ेहन पर क़ाबिज़ हो मेरे
हसरत से ज़ेहन पर साबित हो मेरे
ख़याल हो, ख़्वाब हो,
नदी हो, कि बेख़ुदी हो
क्या हो आख़िर ? क्यूँ हो आख़िर
पोशीदा होकर भी, तुम हो ज़ाहिर
गर ख़याल हो तो काग़ज़ पर उतारू तुम्हें
गर ख़्वाब हो तो रात भर निहारू तुम्हें
गर नदी हो तो बाहों में भर लू तुम्हें
गर बेख़ुदी हो तो खुद में तर लू तुम्हें
कौन हो तुम ? कहाँ रहती हो ?
मुझमें हर दफ़ा, यूँही बहती हो
सदियों से ज़ेहन पर क़ाबिज़ हो मेरे
फ़ुर्सत से ज़ेहन पर साबित हो मेरे ।
बारिश हो, सिफ़ारिश हो,
या रूह की गुज़ारिश हो
क्या हो आख़िर ? क्यूँ हो आख़िर
नही होकर भी, तुम हो आख़िर
गर बारिश हो तो महफूज़ कर लू तुम्हें
गर सिफ़ारिश हो तो मंसूब कर लू तुम्हें
गर रूह हो तो महसूस कर लू तुम्हें
गर गुज़ारिश हो तो मक़्बूल कर लू तुम्हें
कौन हो तुम ? कहाँ रहती हो ?
मुझमें हर दफ़ा, यूँही बहती हो
बरसों से ज़ेहन पर क़ाबिज़ हो मेरे
फ़ुर्कत से ज़ेहन पर क़ातिब हो मेरे
क्या हो आख़िर ? क्यूँ हो आख़िर
पोशीदा होकर भी, तुम हो ज़ाहिर
नही होकर भी, तुम हो आख़िर
नही होकर भी, तुम हो आख़िर ।।
#RockShayar Irfan Ali Khan
दफ़ा – बार
मुद्दत – लंबा समय
ज़ेहन – याददाश्त
क़ाबिज़ – जिसका अधिकार हो
ख़याल – कल्पना
ख़्वाब – स्वप्न
बेख़ुदी – अचैतन्य
पोशीदा – छुपा हुआ
ज़ाहिर – प्रत्यक्ष
मंसूब – सम्बन्धित
मक़्बूल -स्वीकृत
फ़ुर्कत – जुदाई
क़ातिब – लेखक
“कुछ यादें”
गुज़र जाता है वक़्त, गुज़रती नही कुछ यादें
ठहर जाता है वक़्त, ठहरती नही वो बरसातें
जज़्बातों में आकर ही, जज़्बाती होता है ये दिल
तुझको पाकर ही फिर, खुद को खोता है ये दिल
हर इक लम्हा जहाँ, मुकम्मल कोई सदी लगता है
पलकों से बहती हुई, मुसलसल कोई नदी लगता है
ख़ामोश होने लगते हैं, धीरे धीरे अल्फ़ाज़ सभी
फ़रामोश होने लगते हैं, धीरे धीरे एहसास सभी
अक़्ल के परदे के पीछे, बोलता कमअक़्ल कोई
ज़िंदगी के राज़ अक्सर, खोलता हमशक़्ल कोई
मिट जाती है हर चीज, मिटती नही कुछ यादें
गुज़र जाता है दिन, फ़क़त कटती नही वो रातें ।।
———————–
#रॉकशायर ‘इरफ़ान’ अली खान
मुकम्मल – पूर्ण
मुसलसल – निरंतर
फ़रामोश – विस्मृत
अक़्ल – बुद्धि
फ़क़त – केवल
“आख़िरी ख़्वाहिश तो सब पूरी करते है”
“मिसाइलमैन डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम साहब”
(Tribute to Bharat Ratna Dr. A. P. J. Abdul Kalaam Sahab)
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कलाम क्या लिखू मैं उन पर, वो खुद एक कलाम है
मिसाइलमैन कहे दुनिया जिन्हें, उनको मेरा सलाम है
जुनून है जिनकी पहचान, अग्निपंख से भरी उङान
विज्ञान और कला की मूरत, हिंद की निराली शान
सीखने का जज़्बा ऐसा, कि परिंदों से खुद उङना सीखा
समंदर की मचलती हुई, उन लहरों से खुद मुङना सीखा
ख़्वाब देखा ख़याल बुने, मेहनत से साकार किया उन्हें
विस्तृत वृहत् लक्ष्य चुने, हिम्मत से आकार दिया उन्हें
अग्नि त्रिशूल पृथ्वी नाग, आकाश उन्हें नाम दिया
रक्षा क्षेत्र में सबसे बङा, सबसे अनूठा काम किया
भारत को महाशक्ति बनाने की, उम्दा सोच रखते है
चेहरे पर हमेशा अपने, यह ज्ञान का ओज रखते है
छात्रों से जितना लगाव, आध्यात्म से उतना जुङाव
जीवन के रहस्यों से, आत्मा जैसा आत्मिक जुङाव
विकसित भारत के वो दृष्टा, दिया जिन्होंने एक विजन
दो हजार बीस तक हो पूरा, अपना आत्मनिर्भरता मिशन
कलाम क्या लिखू मैं उन पर, वो खुद एक कलाम है
मिसाइलमैन कहे दुनिया जिन्हें, उनको मेरा सलाम है ।।
#The RockShayar Irfan Ali Khan
“बिस्मिल्लाह” (शुरू अल्लाह के नाम से)
In the Name of ALLAH, the All-beneficent, the All-merciful.
शुरू अल्लाह के नाम से, अदब-ओ-एहतराम से
ज़िक्र-ए-रसूल से लबरेज़, रूहानियत के क़याम से
साँसें तेरी जब भी चले, ये पलकें तेरी जब भी ढ़ले
इश्क़-ए-सरवर में ग़ुरूब, सूफ़ियाना चंद कलाम से
ज़िंदगी तेरी कुछ ऐसी हो, हुज़ूर-ए-अक़दस जैसी हो
आयत-ए-कुरआन में बयां, इंसानियत के पयाम से
जो भी करे तू दिल से कर, नेकी न सही बदी न कर
राह-ए-हक़ पर चलते हुए, यूँ सदाक़त के पैग़ाम से
शुरू अल्लाह के नाम से, रूहानी विर्द-ओ-एहतमाम से
नबी-ए-क़रीम के सदका-ए-तुफ़ैल, दुरूद-ओ-सलाम से ।।
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— रॉकशायर ‘इरफ़ान’ अली खान
“Woh PostGraduate Yaadein”
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
कॉलेज डेज की मस्तियाँ, कुछ मीठी नमकीन बातें
ज़िंदा हो रही है आज फिर, वो पोस्ट ग्रेजुएट यादें
मचता जो हर वीकेंड पर, असाइनमेंट्स का शोर
लास्ट डेट को ही लगाते, सब अपना अपना ज़ोर
एम. टेक. स्टूडेंट्स की, दास्तां ये सबसे निराली
सिर पर रहती हर वक़्त, प्रेशर की बन्दूक दुनाली
इक हाथ में जॉब थे पकड़े, दूजे में डिग्री की थाली
एग्जाम्स के दिनों में ही, करते थे वो सब रातें काली
थीसिस अप्रूव हो जाये बस, मने तभी अपनी दिवाली
गुस्से में अक्सर, लाल पीला हो जाता ये दिल
क्लासेज का शिड्यूल, जब भी करता संडे किल
बावज़ूद इनके मगर, लाजवाब था वो दौर अपना
ज़िंदगी के सफ़र का, है जो एक प्यारा सपना
खुशियाँ बिखेरते लम्हें, और कुछ खूबसूरत वादें
ज़िंदा हो रही आज फिर, वो पोस्ट ग्रेजुएट यादें
ज़िंदा हो रही आज फिर, वो पोस्ट ग्रेजुएट यादें ।।
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“नाज़नीन”
बारिश में भीगकर और भी हसीन लगती हो
फ़लक से उतरी हाँ कोई नाज़नीन लगती हो ।।
“Tribute to Vijay Diwas”
भङक रही वो अग्नि तब से
विश्वासघात हुआ है जब से
शत्रु का तुझे करना है विनाश
धरती डोले चाहे गिरे आकाश
भुजाओं में तेरी है सहस्त्र बल
जगा ले तू अपना आत्म बल
भय को भी तुझसे भय लगे
रणभूमि अब तो प्रलय लगे
दिखा तू अपना शौर्य कौशल
ना रहे फिर कोई स्तूप दुर्बल
चहुँ दिशा गूँज रहा जयघोष
नेत्रों में तेरी धधक रहा है रोष
विजय दिवस है आज ये संकल्प करो तुम
हिंद की रक्षा का अब स्वविकल्प करो तुम ।।
“एहसास की फसल”
एहसास की वो फसल
उगाई थी जो यादों की बगिया में
बड़ी होने लगी हैं अब वो धीरे धीरे
कल तक जो नन्ही नन्ही कोंपल थी
आज विशाल तना बनने की ओर है
जुनून की खाद ने समय समय पर
उपजाऊपन बनाये रखा है इसमें
हालाँकि कुछ बंजर हिस्से
आज भी खरपतवार के रूप में
आस पास डेरा डाले हुए हैं
मगर अब जड़ें इतनी मज़बूत हो चुकी हैं
कि फ़र्क़ नहीं पड़ता है इन्हें
अपनी जड़ों की छाया में
किसी और के जड़ें जमाने से
मेहनत का सूरज इन्हे
अपनी धूप में पका रहा है
जब फसल कटने की बारी आये
तो ये फसल, बस इतना चाहती है
कि जिसने इसे ज़मीं दी, पानी दिया, खाद दिया
उसी के हाथों ये कटना चाहती है
उसी के घर का अनाज बनना चाहती है
उसी का भोजन बनकर
उसकी भूख शांत करना चाहती है
अल्फ़ाज़ की वो फसल
उगाई थी जो उस छोटी डायरी में
बड़ी होने लगी हैं अब वो धीरे धीरे ।।
#TheRockShayar
“कहके तेरी ले ली”
सुण जरा ओ बावळी पूंछ, मुंडवाले इब तू मूंछ
कहके तेरी ले ली, कारण इसका तू खुद से पूछ
जचा के जित्ता खिलाया, पचा के उत्ता पिलाया
नचा नचा के भगाते हुए, फाङ के फिर सिलाया
ढोंगी लगे है सच्चा अब, पाखंडी लगे है बच्चा अब
लोक लाज सब भूलकर, नौटंकी लगे है लज्जा अब
दोगली ये दुनियादारी, ओंखली है दुनिया सारी
रिश्तों की माँ की आँख, खोखली है दुनिया सारी
जिणको तू चावे है ज्यादा, वे ही थने रूलावे सदा
खुद से ज्यादा जज़्बाती तू, उणके लिए होवे सदा
बात बात पर हमेशा, इमोशण को रायतो फैलाणो
रात रात भर हमेशा, नियम और क़ायदो सिखाणो
सुण जरा ओ बावळी पूंछ, मुंडवाले इब तू मूंछ
कहके तेरी ले ली, कारण इसका तू खुद से पूछ ।।
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“Yaad aa rahi hai”
“MATLAB Video Poem”
“ख़ानाबदोश सा फ़क़त सय्यारा हूँ”
बेपरवाह बेहद बेक़रार बंजारा हूँ
अपनी ही धुन में यूँ तो आवारा हूँ
पाबंदी लगाने की सोचना भी मत
ख़ानाबदोश सा फ़क़त सय्यारा हूँ ।।
“रात की नीली ख़ामोशी”
रात की नीली ख़ामोशी कुछ कहती हैं
चाँद की परछाई हौले हौले यूँ बहती हैं
सितारों की झीनी झीनी चदरिया
ख़्वाबों की भीनी भीनी बदरिया
चैन-ओ-सुकूं की बारिश बरसती है
रात भर रात की ख़्वाहिश लरज़ती हैं
जुगनू करते रहते है यूँ अठखेलियाँ
अंधेरों से पूछे उजालो की पहेलियाँ
रात की ये सरगोशी कुछ कहती हैं
चाँद की अंगड़ाई हौले हौले बहती हैं ।।
#TheRockShayar
“तू माँग कभी”
शाहो का जो शाह है, उस शाह से तू माँग कभी
ना रहे फिर चाह कोई, उस चाह से तू माँग कभी
अता करे वो आज भी, जानता है दिलों के राज़ भी
नम हो जाए निगाहें खुद, उस निगाह से तू माँग कभी
हर शय पर क़ादिर है जो, हर शय पर ज़ाहिर है वो
आह भरने लगे खुद आहें, उस आह से तू माँग कभी
हर कदम पर यहाँ जो, साथ है तेरे पास है तेरे
ज़िंदगी और मौत के, उस हमराह से तू माँग कभी
क़ुबूल होती है दुआएं, आज भी ‘इरफ़ान’ यहाँ
फ़क़त माँगते है जिस तरह, कुछ उस तरह से तू माँग कभी ।।
#TheRockShayar
“Microprocessor”
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
कंप्यूटर का तेज़ दिमाग, जैसे कोई क्वालिफाइड प्रोफेसर
इंटेल इंकॉर्पोरेशन ने बनाया, वो कहलाता माइक्रोप्रोसेसर
दिखने में तो है बस यह, छोटी सी एक नन्ही आई.सी.
हैंडल पूरा सिस्टम करे, विद टेक्निक न्यू हाई-फाई सी
डिफरेंट टाइप ऑफ़ सर्किट को, सिंगल चिप पर इंटीग्रेट करे
अर्थमेटिक लॉजिकल डिसीजन, रजिस्टर्स में एक्युमुलेट करे
सी.पी.यू. की जान है जो, सूचना तकनीक की बैकबोन
डायोड रेसिस्टर ट्रांज़िस्टर्स को, करता है यह रॉक ऑन
भिन्न भिन्न तरह के यहाँ पर, पाये जाते है इंस्ट्रक्शन सेट
बिट साइज हो स्मॉल जितना, बढे उतनी एग्जीक्यूशन रेट
प्रोवाइड करे कम्युनिकेशन पाथ, एड्रेस और डाटा बस
इनपुट आउटपुट मेमोरी विद, डाटा ट्रांसफर कंट्रोल बस
फ्लैग इंटरप्ट एड्रेसिंग मोड, या हो पेरीफेरल इंटर्फेसिंग
असेंबली है प्रोग्रामिंग इसकी, सुपर्ब है डिसीजन मेकिंग
स्पीड में एवन, जैसे कोई फार्मूला वन सर्टिफाइड रेसर
इंटेल इंकॉर्पोरेशन ने बनाया, वो कहलाता माइक्रोप्रोसेसर ।।
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“ज्यादती पसंद है हमें”
ज्यादती पसंद है हमें
चाहे इश्क़ हो, चाहे दर्द ।।
“एक शोख़ नदी ने भिगोया मुझे”
अलसुबह गीले गीले छपाको से
एक शोख़ नदी ने भिगोया मुझे
जिस तरह जा रही थी वो
जिस तरह गा रही थी वो
हौले हौले मुझको तो बस
कुछ इस तरह भा रही थी वो
कि जैसे कोई प्यासा
सहरा में भटक रहा हो
बरसो से
कई अरसो से
और अब जाकर
मिला हो उसे
रौशनी का दरिया
जीने का ज़रिया
जन्नत से आई परियां
बरसती हुई बदरिया
मचलती हुई डगरिया
थोङा ही कहीं
हाँ बदला तो सही
ज़िंदगी का नज़रिया
कुछ ऐसा जो तर कर दे
जिस्म से लेकर रूह तक
कुछ ऐसा जो घर कर ले
जुनून से लेकर सुकूं तक
अलसुबह गीले गीले छपाको से
एक शोख़ नदी ने भिगोया मुझे ।।
#TheRockShayar
“क्या कह रही है ज़िंदगी”
तेरी भीगी हुई ज़ुल्फ़ों से, यूँ बह रही है ज़िंदगी
तेरी उलझी हुई लटों से, क्या कह रही है ज़िंदगी ?
छुपा ले आ मुझको, अपने आगोश में तू कहीं a
अनकही कुछ बातों से, ये कह रही है ज़िंदगी
तेरी आँखों का काजल, नूर का घनेरा बादल
सोहबत में जिसकी, हुआ रेशम सारा आँचल
तेरी यादों का आँगन, मिटटी की तरह पावन
तेरी साँसों का सावन, लागे मुझको मनभावन
तेरी मद्धम मुस्कान, फूँक देती है मुझमें जान
तेरी थिरकती तान, फूँक देती है रूह में जान
तेरा पलकों को यूँ झुकाना, करता है दीवाना
तेरा नज़रो को यूँ मिलाना, लगता है शायराना
तेरी भीगी हुई ज़ुल्फ़ों से, यूँ बह रही है ज़िंदगी
तेरी उलझी हुई लटों से, क्या कह रही है ज़िंदगी ?
छुपा ले आ मुझको, अपने आगोश में तू कहीं
अनछुवी मुलाकातों से, ये कह रही है ज़िंदगी
महकी हुई उन रातों से, ये कह रही है ज़िंदगी ।।
#TheRockShayar
“LabVIEW”
#ObjectOrientedPoems (OOPs)
(Laboratory Virtual Instrument Engineering Workbench:
An Engineering Tool by National Instruments)
————————————
वर्चुअल सिस्टम का, देता है जो रियल टाइम व्यू
नेशनल इंस्ट्रूमेंट्स की नायाब खोज, वो है लैबव्यू
मल्टी कोर प्रोसेसिंग, एग्जीक्यूशन स्पीड बढ़ाये
मल्टी मोड प्रोग्रामिंग, वायर्स की सब भीड़ हटाये
हार्डवेयर इंटरफेसिंग, जो कनेक्ट करे हर एक को
नन्ही नन्ही डिवाइसेस, कॉम्पैक्ट करे हर लैब को
डेटा सैम्पल हो चाहे कोई, सेंस स्टोर सिमुलेट करो
अकॉर्डिंग टू अपने आइडियाज, ड्रीम्स खुद इनोवेट करो
इलेक्ट्रिकल मैकेनिकल, हो चाहे इलैक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंटेशन
एवरी टाइप ऑफ़ इंडस्ट्रीज का, करता है ये ऑटोमेशन
सबसे बड़ी है खूबी इसकी, रियल टाइम डेटा एक्वीजीशन
हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन, बाक़ी नहीं फिर कोई क्वेश्चन
सिम्प्लिसिटी में कॉम्पलेक्सिटी, है इसकी यूटिलिटी
पावरफुल पैरेलल परफॉरमेंस, है इसकी कैपेबिलिटी
इंजीनियर की कल्पना को, करे है जो साकार यूँ
नेशनल इंस्ट्रूमेंट्स की स्मार्ट सोच, वो है लैबव्यू ।।
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“मैंने खुद को फ़ना किया हैं”
इश्क़ में तेरे मैंने खुद को फ़ना किया हैं
लाख चाहे दिल ने मुझको मना किया हैं ।।
“तुम भी कभी”
This is not only just a song or poem. Its voice of every soul. Beleive yourself. Follow your heart…
ख़ामोशी की आवाज़ सुनो ना, तुम भी कभी
खुद अपनी परवाज़ चुनो ना, तुम भी कभी
यूँही तो ना बैठे रहो, आहों पर लेटे रहो
चल पड़ो बेमंज़िल ही कहीं, तुम भी कभी
ख़्वाहिशों की स्याही से, रूह के पन्नो पर
सरफिरे अल्फ़ाज़ बुनो ना, तुम भी कभी
ख़ामोशी की आवाज़ सुनो ना, तुम भी कभी
खुद अपनी परवाज़ चुनो ना, तुम भी कभी..
कहती है ये क्या तुमसे ? मांगती है ये क्या सबसे?
खुद को भी पता नहीं है, चाहती है ये क्या खुद से?
लौ लगाकर इसके सब, राज़ सुनो ना तुम भी कभी
मिटटी से मटमैले, एहसास बुनो ना तुम भी कभी
यूँही तो ना जीते रहो, दर्द को बस पीते रहो
उड़ चलो बेफ़िकर ही कहीं, तुम भी कभी
इरादों की स्याही से, दिल के पन्नो पर
मनचले अल्फ़ाज़ बुनो ना, तुम भी कभी
ख़ामोशी की आवाज़ सुनो ना, तुम भी कभी
खुद अपनी परवाज़ चुनो ना, तुम भी कभी ।।
#TheRockShayar
“Every night i miss you”
This is my second english poem. As i said before,
Don’t be judgemental, Just be sentimental.
If you find any error, Ignore them n look at mirror…
“Every night i miss you”
Every night i miss you
Every night i kiss you
Breath burn warm felt
Slowly slowly soul melt
Your blue eyes like snow lake
Your silky hairs like golden flake
Whenever you look at me
My heart is become tree
Beating faster lub n dub
When i touch you n club
I lost myself in your arms
You lost yourself in my charm
Every night i miss you
Every night i kiss you
Feeling burn warm felt
Slowly slowly soul melt
Slowly slowly soul melt.
#TheRockShayar
“मैटलैब” (MATRIX LABORATORY)
#ObjectOrientedPoems (OOPs)
मैथवर्क्स ने बनाया एक लाजवाब ऐप
कहते है जिसको हम सब मैटलैब
वैरिएबल्स का करे एग्जेक्ट सिमुलेशन
टूल्स में इसकी अच्छी खासी रेप्युटेशन
हार्डवेयर सॉफ्टवेयर, गले सब को लगाये
एनालिसिस का ग्राफ, यूँ चुटकियों में बनाये
टूलबॉक्स तो सब लगते है जादुई पिटारे
इंजीनियर्स की आँखों के ये चहेते सितारें
प्लॉटिंग हो कैसी भी, पल भर में कर दे
लोडिंग वो डाटा की, मैट्रिक्स में भर दे
सिमुलिंक्स हो जैसे, अलादीन का चिराग
सिस्टम डिजाइन करो, गाओं अपना अपना राग
यूजर को देता है ये, सुपर्ब फ्लेक्सिबिलिटी
एज यू केन तुम, दिखाओ अपनी क्रियेटिविटी
मैथ्स-इंजीनियरिंग का कॉम्बो दी ग्रेट
कहते है जिसको हम सब मैटलैब ।।
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“वर्किंग वूमन” (Poetic Tribute to all Working Women’s)
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
मशीन नहीं हाँ कोई, वो भी है आख़िर एक ह्यूमन
ड्यूल किरदार निभाती है जो, वो है वर्किंग वूमन
एक तरफ है घर अपना, एक तरफ है जॉब अपना
अपनो की खातिर यहाँ जो, भूले बैठी हर सपना
अर्ली मॉर्निंग उठ जाती, चाय नाश्ता टिफिन बनाती
कामकाज सब निपटाकर, मन ही मन कुछ गुनगुनाती
ऑफिस में हो कितना भी, काम का प्रेशर ऑवरलोड
घर आते ही मगर वो, ऑन कर लेती है पावर मोड
बच्चों को होमवर्क कराये, सोते वक्त कहानी सुनाये
माँ पत्नी बहू और बेटी, रिश्तों में खुद को उलझाये
हो पतिदेव के नखरे, या के बॉस की फटकार
सब सहन करती है ये, विदाउट एनी तक़रार
सास ससुर के ताने सुनती, खुद अपनी राहें चुनती
लाख कहे दुनिया यहाँ, बस अपने दिल की सुनती
मशीन नहीं हाँ कोई, वो भी है आख़िर एक ह्यूमन
दोहरी ज़िंदगी जीती है जो, वो है वर्किंग वूमन ।।
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“वो मुझसे ज्यादा मेरी मोहब्बत को चाहती है”
“तेरी असफलता में ही तेरी सफलता छुपी है”
तेरी असफलता में ही तेरी सफलता छुपी है
ग़ौर से देखो हाँ शुष्क में भी तरलता छुपी है
असंभव लगे जो भी तुझे, संभव करे तू ही उसे
सूनी आँखों में सदा, अनुभव करे हर पल जिसे
तेरी आकुलता में ही तेरी अनुकूलता छुपी है
छूकर देखो हाँ कठोर में भी सरलता छुपी है
रहता है तू दिया तले, फिर भी क्यूँ रौशनी ना ले
जलता है यूँ जिया जले, फिर भी ये रौशनी ना ले
अनजान लगे जो भी तुझे, जानता है तू ही उसे
मन ही मन में अपना सदा, मानता है यूँही जिसे
तेरी विफलता में ही तेरी सफलता छुपी है
ग़ौर से देखो हाँ शुष्क में भी तरलता छुपी है ।।
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“वो है चैनल आज तक”
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
पहुँच है जिसकी सदा, ज़मीं से आकाश तक
ख़बरें जरा हटके देता, वो है चैनल आज तक
देश दुनिया कारोबार, या हो क्रिकेट का बुखार
एक्सक्लूसिव न्यूज़ दे, जैसे सावन की फुहार
बेख़ौफ़ होकर बेनकाब करे, धार्मिक पाखंड को
स्पेशल रिपोर्ट में खुले है, वास्तविक आडम्ब वो
फिल्म समीक्षा गॉसिप, और छोटी सी मुलाकात
चर्चित शख़्सियतो से, प्रभु चावला की सीधी बात
वारदात क्राइम विशेष, या हो पुलिस की सांठगांठ
एक एक करके राज़ खोले, इंडिया तीन सौ साठ
हल्ला बोल पर फटाफट, सिके राजनैतिक रोटिया
टीवी सीरियल्स बन गई है, सास बहू और बेटियां
पहुँच है जिसकी सदा, महानगरो से गाँव तक
सबसे तेज़ सबसे आगे, वो है चैनल आज तक ।।
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“ये कैसा वैचारिक उन्माद है”
“ये कैसा वैचारिक उन्माद है”
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ये कैसा वैचारिक उन्माद है ?
ये कैसा औपचारिक संवाद है ?
शिथिल हो गई है हर एक भाषा
ये कैसा वैधानिक अपवाद है ?
मलिन हो रहे है सब धवल यहाँ
कुलीन कहलाये अब गरल यहाँ
कल्पना दृष्टि की अभिकल्पना का
ये कैसा नैसर्गिक अनुवाद है ?
जटिल हो गई है हर एक आशा
ये कैसा वैचारिक उन्माद है ?
नवाचार के नाम पर, दुराचार है फैला
सदाचार भी अब तो, है कितना मैला
भौतिकवादी युग के भावों का
ये कैसा अभौतिक अनुनाद है ?
कुटिल हो गई है हर एक गाथा
ये कैसा वैधानिक परिवाद है ?
शिथिल हो गई है अब आत्म भाषा
ये कैसा वैचारिक उन्माद है ?
ये कैसा वैचारिक उन्माद है ।।
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“वो नज़र ही नज़र से, अब तो बेनज़र हो चली”
ग़ज़ल से दूरिया मेरी, इस क़दर हो चली
के ज़िंदगी अब तो मेरी, दरबदर हो चली
ढूंढता रहा मंज़िल, मिला ना कोई साहिल
निगाहें खुद बखुद निगाहों की, हमसफ़र हो चली
ख़्वाब में होता रहा, दीदार अक्सर जिनका
वो मुलाकातें ही अब तो यूँ, मुख़्तसर हो चली
रूह की तस्वीर ये, धुंधली धुंधली लागे क्यूँ
बिन बारिश के भी, दुआ तर बतर हो चली
तकते रहे जिस नज़र को, ताउम्र ‘इरफ़ान’ यहाँ
वो नज़र ही नज़र से, अब तो बेनज़र हो चली ।।
“ईद का चाँद हो गए”
“तेरी ज़ुल्फ़ों के वो घनेरे साये”
तेरी ज़ुल्फ़ों के वो घनेरे साये
छाँह में जिनकी मांगू मैं पनाहे
तेरी आँखों की वो कज़ली घटाए
नूर में जिनके बसती है वफ़ाएं
तेरा वो आँचल जब कभी लहराये
संग संग उड़ने लगे ये फ़िज़ाएं
कानों के झुमके झूमते है खुद बखुद
लबों को मेरे ये चूमते है खुद बखुद
पलकें पलकों से कुछ कहती है
साँसों की तरह मद्धम बहती है
बाँहों की बाँहों में पिघल रही है बाहें
सर्द हवाओ सी मचल रही है निगाहें
तेरी ज़ुल्फ़ों के वो घनेरे साये
छाँह में जिनकी मांगू मैं दुआएं ।।
“मुक़द्दस पाकीज़ा कुरआन शरीफ”
In the Name of Allah, the All-beneficent, the All-merciful.
हर सवाल का जवाब है वो, मुक़द्दस बेहिसाब है वो
माहे रमजान में नाज़िल हुई, अल्लाह की किताब है वो
मर्तबा इस क़दर है हासिल, समझे जो वही हो फ़ाज़िल
तिलावत में तासीर इतनी, रहता नहीं फिर कोई ग़ाफ़िल
हर सूरत में इसकी यहाँ, ज़िंदगी का अहकाम बयां है
हर आयत में इसकी सदा, बंदगी का अहतराम रवां है
ज़मीं पर हिफाज़त जिसकी, यूँ तो खुद ख़ुदा करते है
रूहानी सब अल्फ़ाज़ इसके, गुनाहो से ज़ुदा करते है
राहे हिदायत का ज़रिया है वो, रहमत का दरिया है वो
रहनुमा-ए-कायनात हाँ खुद, ईमान का नज़रिया है वो
गारे हिरा में उतरी जो, नबी-ए-करीम सल्लाहु अलैहि व सल्लम पे
पढ़कर सुनाया था जिसे, हाँ खुद हज़रत जिब्रील अलैहिसलाम ने
पढ़ी जाये जितनी ज्यादा, ठहर ठहर कर बोल बोल कर
दिल में उतरे उतनी ज्यादा, रह रह कर दिल खोल कर
हर हर्फ़ निहायत सवाब है वो, पाकीज़ा बेहिसाब है वो
उम्मत के लिए तोहफा, ख़ुदा की तरफ से लाजवाब है वो
हर सवाल का जवाब है वो, मुक़द्दस बेहिसाब है वो
माहे रमजान में नाज़िल हुई, अल्लाह की किताब है वो ।।
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© रॉकशायर इरफ़ान अली खान
“फ़ाक़े रोज़े पर है रूह”
“बन रहा है इंडिया डिजिटल”
#DigitalIndia
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
ना रहा अब पहले जैसा, कामकाज सरकारी टिपिकल
रफ़्ता रफ़्ता अब तो भय्या, बन रहा है इंडिया डिजिटल
इकोनॉमी फ्रैंडली मेक इन इंडिया, है थीम इसकी
लेस पेपर वर्क विद जीरो करप्शन, है नीवं इसकी
गांवों से कनेक्टेड शहर, वाया ऑप्टिकल फाइबर
हर तरफ यहाँ अब तो, गूँज रहा है संगीत साइबर
कितनी आसान है ये, डिजिटल लाॅकर की सुविधा
डाक्यूमेंट्स स्टोर करो सब, ना होगी फिर दुविधा
फाइलों से घिरा था जो, हर दफ़्तर अब कम्प्यूटरीकृत
बाबूराज से मुक्त प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिकी अब अधिकृत
ज़िंदगी का आधार जो, आधार कार्ड से लिंक है वो
इतिहास के पन्नों पर, फ्यूचर की अमिट इंक है वो
किसान मज़दूर व्यापारी, बच्चे बूढ़े नौजवान छात्र
जुङे है खुद पीएम इससे, ज्ञान का यह अक्षय पात्र
गुड गवर्नेंस की पहल है ये, उम्मीदों का महल है ये
हर हिंदुस्तानी की हाँ, सोच बदलने की पहल है ये
सूचना तकनीक का कमाल, हर तरफ फैला है जाल
संसाधनों के स्मार्ट यूज से, देश होगा फिर खुशहाल
ना रहा सब पहले जैसा, तंत्र आज सरकारी टिपिकल
रफ़्ता रफ़्ता अब तो भय्या, बन रहा है इंडिया डिजिटल ।।
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“फार्मासिस्ट: (दवादार)”
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
हर मर्ज़ की दवा रखते है, नाम है जिनका केमिस्ट
डॉक्टर की भाषा जो समझे, नाम है उनका फार्मासिस्ट
टैबलेट कैप्सूल स्प्रे सीरप, हो चाहे कोई स्पेसिफिक सॉल्ट
कम्पोजिशन समझने की इनमें, कुदरत होती है बाइ-डिफॉल्ट
सिट्राजीन डाइक्लोफिनेक, ऐजीथ्रोमाइसिन या पेरासिटामोल
सिर्फ प्रेसक्रिप्शन ही नही, समझते है ये ज़िंदगी का मोल
क्वालिटी ड्रग की चैक करते है, एज पर नॉर्म्स उन्हें टैग करते है
मल्टी विटामिन एंटीबायोटिक, एज पर डिमांड उन्हें पैक करते है
इंजेक्शन इंफ्यूजन सस्पेंशन क्रीम, एंटी फंगल पेस्ट सभी
मेडिकल फील्ड की बेकबोन है ये, करते नही है रेस्ट कभी
औषधियों का ज्ञान रखते है, नाम है जिनका ड्रगिस्ट
डॉक्टर की भाषा जो समझे, नाम है उनका फार्मासिस्ट ।।
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Pahli Barish ka Ehsas
Ek zinda ehsas
“रूहानी इश्क़”
बर्फ है तू धूप हूँ मैं
तेरा ही तो रूप हूँ मैं
सोहबत में आ पिघल जरा
बेइंतहा कभी मचल जरा
पलकों पर रखे है ख़्वाब से
रूख़ से हटा दे हिज़ाब ये
मिले हम दोनों कुछ इस तरह
रात से मिल रही जैसे सुबह
लबों की ख़ामोशी महसूस करे
इक दूजे में खुद को महफूज़ करे
साँसों के गर्म धारे बह रहे है
हम ना रहे हम ये कह रहे है
हो रहा है जो भी अब होने दे
क़रार दिल का अब खोने दे
रूह में उतर जा तू मेरी
धड़कन बन जाऊ मैं तेरी
पानी है तू आग हूँ मैं
आवारा कोई नाग हूँ मैं
बर्फ है तू धूप हूँ मैं
तेरा ही तो रूप हूँ मैं ।।
#RockShayar
“कभी तो प्यार थोड़ा सा हाँ, मुझसे भी जताओ ना पापा”
कभी तो सीने से अपने, मुझको भी लगाओ ना पापा
कभी तो प्यार थोड़ा सा हाँ, मुझसे भी जताओ ना पापा
खुद को पाने की यहाँ मैं, कर रहा हूँ जद्दोजहद कब से
कभी तो ऐतबार थोड़ा हाँ, मुझपे भी दिखाओ ना पापा
कभी तो सीने से अपने, मुझको भी लगाओ ना पापा
कभी तो प्यार थोड़ा सा हाँ, मुझसे भी जताओ ना पापा ।
आपके बताए रस्ते पर ही, चलता आया हूँ मैं सदा
आपके दिखाए रस्ते पर ही, बढ़ता आया हूँ मैं यहाँ
मर्ज़ी से जीने की केवल, मांग रहा हूँ मर्ज़ी मैं अब
अपने साथ आपकी भी, चाह रहा हूँ मर्ज़ी मैं अब
मोहब्बत की तलाश में, भटक रहा हूँ कब से यहाँ मैं
कभी तो चाहत का सागर, मुझपे भी लुटाओ ना पापा
कभी तो सीने से अपने, मुझको भी लगाओ ना पापा
कभी तो प्यार थोड़ा सा हाँ, मुझसे भी जताओ ना पापा ।
शिकायत नहीं कोई आपसे, ना कोई शिकवा आपसे
खुश है तमाम कायनात यहाँ, ना कोई रुस्वा आपसे
ख़्वाबों की उड़ान भरने में, मांग रहा हूँ मर्ज़ी आपकी
लोगों की पहचान करने में, चाह रहा हूँ मर्ज़ी आपकी
ज़िंदगी के सुर्ख़ अलाव में, भभक रहा हूँ कब से यहाँ मैं
कभी तो हिम्मत के क़तरे, मुझपे भी गिराओ ना पापा
खुद को पाने की यहाँ मैं, कर रहा हूँ जद्दोजहद कब से
कभी तो ऐतबार थोड़ा हाँ, मुझपे भी दिखाओ ना पापा
कभी तो सीने से अपने, मुझको भी लगाओ ना पापा
कभी तो प्यार थोड़ा सा हाँ, मुझसे भी जताओ ना पापा ।।
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“रेडियो सिटी 91.1 FM”
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
शहरो में हाँ शहर जैसे, अपना शहर पिंकसिटी
वैसे ही तुम बोलो ना जी, एफएम बोले तो रेडियो सिटी
सिटी का पूरा हालचाल, मस्त मॉर्निंग्स दे नाल
क्या सुबह क्या शाम जी, ये तो स्टेशन कमाल
सफ़र सुहाने संगीत का, और गपशप बेशुमार
बैक टू बैक बरसे है, गानों की रिमझिम फुहार
चलों चलें ना हम भी, रूबी के संग जॉय राइड पर
खप्ती जी जहाँ बजाये घंटा, बावळी पूंछ टाइड पर
वैसे तो जंगल का राजा, कहलाता है बब्बर शेर
हँसी ठहाकों की यहाँ पे, बाढ़ लाता है बब्बर शेर
सुनहरा वो इक दौर है ज़िंदा, कल भी आज भी
भूले बिसरे वो गीत है ज़िंदा, कल भी आज भी
रिश्तों की उलझी कहानी, सुलझाता है लव गुरु
ज़िदंगी के किस्से रूमानी, बतलाता है लव गुरु
शहरो में हाँ शहर जैसे, अपना शहर पिंकसिटी
वैसे ही तुम बोलो ना जी, एफएम बोले तो रेडियो सिटी ।।
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“यूँही नहीं मुझ में गहरे जज़्बात है”
बेवजह तेरे होने में कुछ तो बात है
यूँही नहीं मुझ में गहरे जज़्बात है
इस तरह तेरे होने में कुछ तो बात है
यूँही नहीं मुझ में ठहरे जज़्बात है
चैन दिल का खोने में तेरा ही हाथ है
यूँही नहीं मुझ में बह रहे जज़्बात है
सुन मेरे ओ माहिया कहाँ है तेरा आशियाँ
हर दिशा हर सू अब तू ही मेरे साथ है
बेवजह तेरे होने में कुछ तो बात है
यूँही नहीं मुझ में गहरे जज़्बात है…
रातों में तू सोता है बातों में तू होता है
ख्वाबों ख़यालो की मुलाकातों में तू खोता है
सुन मेरे ओ साथिया कहाँ है तेरा आशियाँ
महसूस करू तुझे ना होकर भी तू होता है
बेवजह तेरे होने में कुछ तो बात है
यूँही नहीं मुझ में गहरे जज़्बात है…
इस तरह तेरे होने में कुछ तो बात है
यूँही नहीं मुझ में ठहरे जज़्बात है
चैन दिल का खोने में तेरा ही हाथ है
यूँही नहीं मुझ में बह रहे जज़्बात है
बेवजह तेरे होने में कुछ तो बात है
यूँही नहीं मुझ में गहरे जज़्बात है
यूँही नहीं मुझ में बह रहे जज़्बात है ।।
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“टाटा स्काई”
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
घर बैठे जिसने हमको, पूरी दुनिया है दिखाई
लाइफ बना दे जिंगालाला, वो है टाटा स्काई
टाटा की टेक्निक विद, स्काई का सेटेलाइट जाल
मिले जब ये दोनों तो जी, डीटीएच हुआ बेमिसाल
टीवी के संग सेट इसका, डिजिटल सेट टॉप बॉक्स
म्यूजिक मस्ती मूवीज धमाल, गाये ज़िंदगी रॉक्स
जो चाहे वो पैकेज यहाँ, चैनल एज पर एज़ यहाँ
एक्टिव फन लर्निंग से भय्या, बनते बच्चे तेज यहाँ
कुकिंग दर्शन इंग्लिश गणित, या हो उम्दा शायरी
ज्ञान का एक्टिव पिटारा, जैसे कोई एंटीक डायरी
डायरेक्ट टू होम जिसने, खुशियों की बगिया सजाई
लाइफ बना दे जिंगालाला, वो है टाटा स्काई ।।
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“आज खुश हूँ बहुत”
एक अरसे के बाद
कई बरसो के बाद
आज खुश हूँ बहुत
ना जाने वजह कौन है ?
ना जाने अदा कौन है ?
अंधेरो से उजालो की
ना जाने सुबह कौन है ?
मालूम नही ये क्या है ?
मालूम नही ये क्यूँ है ?
पर जो भी है अब यही है
गर जो भी है बस सही है
पता नही इसे कैसे लिखू ?
पता नही इसे कैसे कहूँ ?
रूह के साये में जो कभी
अपने पराये में जो कभी
रफ्ता रफ्ता यूँ हौले हौले
हाँ जिसे महसूस किया है
निगाहों में बाहों में
यादों की पनाहों में
हाँ उसे महफूज़ किया है
एक अरसे के बाद
कई बरसो के बाद
आज जिया हूँ बहुत
ना जाने वफ़ा कौन है ?
ना जाने दुआ कौन है ?
अब तो मुस्कराने की
ना जाने वजह कौन है ? ।।
“ना मेरा कोई हमनशीं”
दिलरूबा दिलदार, दिलबर दिलनशीं
लफ़्ज़ है कोरे, ना मेरा कोई हमनशीं
अजनबी गलियों का, अनजान मुसाफ़िर
तक़दीर का मारा, जैसे कोई काफ़िर
सीने में उठता है, दर्द हर रोज ही
दर्द को समझे, हाँ केवल दर्दसोज़ ही
तन्हाई के साये, पास मुझे बुलाये
जलाने के लिए यूँ, पास मुझे सुलाये
टूटे हुए दिल की मैंने आह सुनी है
सुनकर दिल की मैंने राह चुनी है
हमनवां हमसफ़र, हमदम हमनशीं
लफ़्ज़ है कोरे, ना मेरा कोई जानशीं ।।
#RockShayar
“फिर दर्द कैसा, आहें कैसी”
ज़ख्म खुद चुने है मैंने
फिर दर्द कैसा, आहें कैसी ।।
“चाँदनी सब रातें उसकी”
छोटी छोटी सी आँखें उसकी
मीठी मीठी सी बातें उसकी
वादियों के शहर की प्रिंसेस वो
फेयरी टेल सी सौगातें उसकी
ज़ुल्फें जब कभी वो लहराए
दिल में मेरे चलती है हवाए
कजली पलकें जब वो उठाए
महफ़िल में जलती है शमाए
मस्ती भरी मुलाकातें उसकी
राह तकू आते जाते उसकी
बर्फीले पहाड़ों की चाँदी वो
और चाँदनी सब रातें उसकी ।।
“रेडियो मिर्ची 98.3 FM”
क्रेज़ीपन की फुल डाइट, जैसे कोई तीखी मिर्ची
एफएम है नंबर वन जो, इट्स हॉट रेडियो मिर्ची
मॉर्निंग गुड अपलोड करे, हाई फाई जयपुर यहाँ
नग़में खुद डाउनलोड करे, वाई फाई जयपुर यहाँ
बिंदास कुङी मोनिया संग, मिर्ची चौपङ झक्कास
ट्रैफिक के हॉटशॉट बनाने, आया मैडमस्त विकास
तेढ़ी बात सीधी मुलाकात, संग चले गीत के साथ
मीठी कहलाये पूजा भी, मिर्चीवाली स्वीट के साथ
ऐसी की तेसी करे वो, दिल्ली वाला नावेद यहाँ
मिर्ची मुर्गा बनाये जो, दिल्ली वाला नावेद यहाँ
पुरानी जींस का सफऱ, गुनगुनाते हुए रॉकिंग रेट्रो
स्टाइलिश सायमा की तो फिर, चल पङी ट्रेन मेट्रो
सुनने वाले ऑलवेज खुश, मिली हो जैसे जेब खर्ची
एफएम है नंबर वन जो, इट्स हॉट रेडियो मिर्ची ।।
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