जो भी मैं लिखना चाहता हूँ
जो भी मैं कहना चाहता हूँ
हर दफ़ा मुझको रोकता है कोई
सौ दफ़ा मुझको टोकता है कोई
मुझ में ही छुपा है शायद डर मेरा
अलहदा करने से हाँ रोकता है वोही
आज़ाद उड़ने पर हाँ टोकता है वोही
ना कोई दुनिया ना कोई ज़माना यहाँ
ख़्वाब देखने से मुझको हाँ रोकता है वोही
ताकत से नहीं वो छल से वार करता है
आज से नहीं वो कल से प्यार करता है
खुद से ज्यादा औरों को पहचानता है
खुद से ज्यादा औरों की वो मानता है
जो भी मैं बुनना चाहता हूँ
जो भी मैं चुनना चाहता हूँ
हर दफ़ा मुझको रोकता है कोई
कई दफ़ा मुझको टोकता है कोई
मुझ में ही छुपा है शायद डर मेरा
अलहदा करने से हाँ रोकता है वोही
आज़ाद बहने पर हाँ टोकता है वोही
ना कोई कहानी ना कोई फसाना यहाँ
ख़याल सेकने से मुझको हाँ रोकता है वोही ।।
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Irfan Ali Khan
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