कुछ वक्त़ तो मेरे साथ भी गुज़ारो कभी
कोई लम्हा तो मेरे साथ भी निहारो कभी
एक अरसे से दिल की आरज़ू है यही
संग तेरे बस जीने की आरज़ू है कहीं
तन्हाई के कागज़ पर तेरी तस्वीर बनाई है
अल्फ़ाज़ के आँगन पर मैंने तक़दीर सजाई है
तुमसे ही सीखा है मैंने खुद से प्यार करना
तुमसे ही जाना है मैंने खुद पे ऐतबार करना
मिलो कभी तो बताऊँगा चाहत क्यूँ है इतनी
ख़याल से ही दिल को मेरे राहत क्यूँ है इतनी
कुछ वक्त़ तो मेरे साथ भी गुज़ारो कभी
कोई लम्हा तो मेरे साथ भी सँवारो कभी ।।