चलो आख़िर तुमने ये इक़रार तो किया
के तुम्हें भी कभी मोहब्बत रही थी मुझसे
उस शुरुआती दौर में
जब अल्फ़ाज़ थे कम
और जज़्बात थे ज्यादा
भले ही उस दौर को
आज इक अरसा हो गया है
मगर मेरे लिए तो
आज भी वो दौर
आज ही लगता है
जब मैं तुम्हारे लिए यूँ दीवाना था
जैसे बरसते मौसम का आवारा बादल
तुमसे नाराज नही हूँ
तुम्हें अपनी जान मानता हूँ
तुम्हारी मजबूरी समझता हूँ
खुद से तुम्हें ज्यादा जानता हूँ
फख़्र है अपनी मोहब्बत पर मुझे
ये जानकर कि
मोहब्बत है तुम्हें
मुझसे ज्यादा
मेरे मोहब्बत करने के अंदाज़ से
अब और क्या चाहिए
इतना काफ़ी है
मेरे जीने के लिए ।।