दर्द को सीने में कसरत से बढ़ाता चला गया
मैं ज़िंदगी की ओट में ज़िंदगी छुपाता चला गया
सफ़र ये तन्हा मिला नहीं जिसका कोई गिला
हमसफ़र राहों का फिर साथ निभाता चला गया
यूँही नहीं कहता हूँ मैं डायरी को जान अपनी
पन्नो पर सपने अधूरे ख़्वाब सजाता चला गया
कभी लगे जो ग़म की तहरीर हर नज़्म यहाँ
कभी नज़्म में अपने हर ग़म भुलाता चला गया
ग़ज़ल लिखने की कोशिश में यूँही ‘इरफ़ान’
लिखकर कागज़ पर एहसास मिटाता चला गया ।।