तुझ में और तेरे लक्ष्य में उतना ही फ़ासला है
मन ये तेरा किसी और का होने को उतावला है
त्याग तप अनुशासन स्वयं पर तू कर शासन
कठोर लगे है आँगन अनंग पर तू कर आसन
नित नई खोज कर जीवन भर फिर मौज़ कर
विचारों की आभा से मुख मंडल पर ओज भर
स्मृति के सुदृढ़ गागर में रोप कोई बीज नया
अनुभूति के सागर में तलाश कोई द्वीप नया
तुझ में और तेरे लक्ष्य में उतना ही फ़ासला है
मन ये तेरा किसी और का होने को उतावला है ।।