जमाने से ना रही, यूँ तो मोहब्बत की दरकार
जमाने मोहब्बत के मगर, लिखता है वो हर बार
मुस्कुराहटें और खुशियां, औरों को देकर
हाँ खुद के लिए कुछ दर्द, रखता है वो हर बार
नासाज़ करे है दिल को, दावत-ए-इश्क़ सदा
ज़ायका फिर भी मगर, चखता है वो हर बार
मिली हो ठोकर, जिस दर पे दर दर की यहाँ
दर पे उसी के अपना, सर रखता है वो हर बार
यूँ तो महरूम रहा, ताउम्र मोहब्बत से ‘इरफ़ान’
फ़साने मोहब्बत के मगर, लिखता है वो हर बार ।।
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#RockShayar I. A. Khan