यतीम से लगते हैं, सब अल्फ़ाज़ यहाँ
गर इन पर जज़्बातों का साया ना हो
Month: January 2015
“फ़ितरत मगर ना जाने क्यूँ, बदल सकी वो मेरी यहाँ”
कोशिश तो बहुत की मैंने, सख़्तदिल बनने की यहाँ
फ़ितरत मगर ना जाने क्यूँ, बदल सकी वो मेरी यहाँ
जले बुझे से कुछ ख़्याल, पूछ रहे बस यही सवाल
हसरत मगर ना जाने क्यूँ, बदल सकी वो मेरी यहाँ
उधङे से ज़ख़्मों के निशां, छिल चुकी हैं रूह की जुबां
कुदरत मगर ना जाने क्यूँ, बदल सकी वो मेरी यहाँ
ख़्वाबों ने, ख़्यालों ने, दिया आसरा खुद ख़राशों ने
हैरत मगर ना जाने क्यूँ, बदल सकी वो मेरी यहाँ
बेरूख़ी मिली जो कई दफ़ा, बेशुमार बेहिसाब जफ़ा
ग़ैरत मगर ना जाने क्यूँ, बदल सकी वो मेरी यहाँ
सूरत तो बदल ली तूने, जैसी थी जो भी ‘इरफ़ान’
सीरत मगर ना जाने क्यूँ, बदल सकी वो मेरी यहाँ
“इस्म मेरा इरफ़ान हैं”
इस्म मेरा इरफ़ान हैं
महसूस ये अब होने लगा…
इस्म – नाम
इरफ़ान – खुदा को पहचानने वाला
“दिलवालों का शहर हैं ये”
दिलवालों का शहर हैं ये
मतवालों का महर हैं ये
तारीफ इसकी क्याँ करू
खुशहालों का पहर हैं ये
नाज़-ओ-अंदाज़ लिए यूँ
ग़ज़लों का बहर हैं ये
मुख़्तलिफ़ नज़ारे यहाँ
तहज़ीब की सहर हैं ये
शाहों ने था लूटा जिसे
सुनहरा वो दहर हैं ये
बयां करू मैं क्याँ ‘इरफ़ान’
ख़्यालों की नहर हैं ये
# रॉकशायर ‘इरफ़ान’
महर – सूर्य, सूरज, आफ़ताब
पहर – समय का छोटा अंश
नाज़ – गर्व, फख्र
अंदाज़ – लहजा, शैली
ग़ज़ल – उर्दू कविता का एक रूप
बहर – वृत, छंद, शेर का वज़्न
मुख़्तलिफ़ नज़ारे – विभिन्न दृश्य
तहज़ीब – संस्कृति, सभ्यता
सहर – सुबह, प्रातः काल
शाह – राजा, शासक
दहर – युग, दौर
“यलग़ार किया मुकद्दर ने भी उसी वक़्त”
यलग़ार किया मुकद्दर ने भी उसी वक़्त
करने लगा था जब मैं तक़दीर पर यक़ीं
यलग़ार – अचानक हमला, आक्रमण
मुकद्दर – नियति, विधि
तक़दीर – भाग्य, किस्मत, नसीब
“शब्दों से नफरत का तोड़ चाहता हूँ”
“यक़ीनन वो मेरा दोस्त हैं”
यक़ीनन वो मेरा दोस्त हैं
अक्सर तनक़ीद करता हैं
“तू फिर भी गिनकर नमाज़े पढता हैं”
वो तो अनगिनत अता करता हैं तुझे
तू फिर भी गिनकर नमाज़े पढता हैं
“फ़क़त वो हैं हिंदोस्ताँ”
मुल्क़ हैं मज़हब मेरा, मुल्क़ ही अब मेरी जां
लगे सबसे प्यारा जो, फ़क़त वो हैं हिंदोस्ताँ
रंग बिरंगे गुल यहाँ, भाषाओं के हैं पुल यहाँ
लगे सबसे न्यारा जो, फ़क़त वो हैं हिंदोस्ताँ
नित नया अंदाज़ यहाँ, ज़िन्दगी हैं साज़ यहाँ
सबका राजदुलारा जो, फ़क़त वो हैं हिंदोस्ताँ
विश्व गुरु सरताज़ वो, कल्पतरू परवाज़ वो
आँखों का सितारा जो, फ़क़त वो हैं हिंदोस्ताँ
गीत ग़ज़ल नज़्म, ना कर पाये जिसको बयां
लगे सबसे प्यारा जो, फ़क़त वो हैं हिंदोस्ताँ
“आँखें तेरी हैं ज़ाम सी”
अल सुबह सलाम सी
उल्फ़त के म़काम सी
इश्क़ रंग ओढ़े हुई यूँ
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
नूर अब्र में नहाई हुई
रूहानी इक हमाम सी
मयक़दा यूँ इस कदर
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
दिल में यूँ उतरते हुए
सूफ़ियाना कलाम सी
हुस्न-ओ-नज़ाकत लिए
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
ख़ुशनुमा एहसास लिए
सद़ाकत के पयाम सी
मौला की इनायत ये
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
ज़िक्र-ए-इलाही में यूँ
पाकीज़ा एहतराम सी
हसीं कोई हसरत पिए
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
मुकद्दस अफज़ल है यूँ
रब के अज़ीम नाम सी
शरबती से ख़्याल पिए
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
नमाज़ी की तरह गहरी
सज़दे में हैं क़याम सी
खूबसूरत बेपनाह लगे
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
सब्ज़ एहसास को पिए
कुदरत के एहकाम सी
शफ़क्कत यूँ ओढें हुए
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
मन मेरा यूँ ख़ुश़्क पत्ता
निगाहें तेरी किमाम सी
ग़ज़ल कहूँ, के कहूँ नज़्म
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी
आँखें तेरी हैं ज़ाम सी ।।
# रॉक-शायर
अल सुबह – प्रात काल
सलाम – प्रणाम
उल्फ़त – प्रेम
मक़ाम – गंतव्य, मंज़िल
ज़ाम – भरा हुआ गिलास
नूर – प्रकाश
अब्र – बादल
रूहानी – आध्यात्मिक
हमाम – स्नान
मयक़दा – शराब सी, मधुमय
सूफ़ियाना – सूफी विचार में डूबा
कलाम – वाक्य, कथन, रचना
हुस्न – सुंदरता
नज़ाकत – मृदुता, कोमलता
सदाक़त – सही राह, सत्य पथ
पयाम – सन्देश
मौला – ख़ुदा, ईश्वर, रब
इनायत – कृपा, दया दृष्टि
ज़िक्र-ए-इलाही – प्रभु की भक्ति वंदना
पाकीज़ा – पवित्र
एहतराम – सम्मान
हसीं – सुन्दर
हसरत – इच्छा, ख़्वाहिश
मुक़द्दस – पवित्र
अफज़ल – उच्चतम
अज़ीम – सबसे बड़ा
सजदा – सर झुकाना, माथा टेकना
क़याम – ठहरना
एहकाम – फरमान, कथन
शफ़क्कत – दया, अनुकृपा, मेहरबानी
ख़ुश़्क – सूखा
किमाम – पान पर लगाने वाला द्रव्य
“बेक़रार ये दिल साहिल सा”
इंतज़ार इसे महफ़िल का
बेक़रार ये दिल साहिल सा
“वो शख़्स अब भी हैं मुझमें”
रहता था अक्सर जो, वो शख़्स अब भी हैं मुझमें
बहता था अक्सर जो, वो नक़्श अब भी हैं मुझमें
मिटा दिये वो सब निशां, जला दिये वो सब मक़ां
ढहता था अक्सर जो, वो अक्स अब भी हैं मुझमें
वादें वो सब यूँ झूठे से, मरासिम हैं अब यूँ रूठे से
चलता था अक्सर जो, वो रक्स अब भी हैं मुझमें
वुज़ूद की आराइश भी वो, रूह की गुज़ारिश भी वो
सहता था अक्सर जो, वो नफ़्स अब भी हैं मुझमें
हिज़्र में डूबी सब रातें, लोबान सी कुछ गर्म साँसें
जलता था अक्सर जो, वो लम्स अब भी हैं मुझमें
लफ़्ज़ों के दरमियां सदा, नुमायां रहना तू ‘इरफ़ान’
कहता था अक्सर जो, वो शख़्स अब भी हैं मुझमें
# रॉक-शायर
शख़्स – व्यक्ति
नक़्श – तसवीर
अक्स – परछाई, साया
मरासिम – रिश्ता, सम्बंध
रक्स – नृत्य
वुज़ूद – अस्तित्व
आराइश – सजावट
रूह – आत्मा
गुज़ारिश – विनती
सहरा – जंगल, वन
नफ़्स – इंद्रिय, अंतर-आत्मा
वस्ल – मिलन
लम्स – स्पर्श
लफ़्ज़ – शब्द
दरमियां – बीच में
नुमायां – प्रत्यक्ष, प्रकट, ज़ाहिर
“ख़्वाज़ा जी पिया मोरे”
ख़्वाज़ा जी पिया मोरे, तड़पे जिया बिन तोरे
सुन लीजो अरज़ मोरी, आया हूँ दर पर तोरे
कौन गाँव में रहते हो, कौन भाव में बहते हो
रूहानी दरिया तुम तो, कौन नाव में बहते हो
तोहे ढूँढू जो हर गली, तोहे ढूँढू मैं हर शहर
दिन के आठों पहर, हर पल शाम-ओ-सहर
रूह मोरी बैचेन सी, करू मैं क्याँ मोहे बता
ना मिला तोरा पता, हुई हैं क्यां मोसे ख़ता
तक़दीर ये क़श्ती मोरी, हवायें हैं सब ख़फ़ा
तक़सीर जो हस्ती मोरी, जफ़ाये यूँ हर दफ़ा
ख़्वाज़ा जी पिया मोरे, तड़पे जिया बिन तोरे
सुन लीजो अरज़ मोरी, आया हूँ दर पर तोरे
कौन रंग में मिलते हो, कौन ढंग में खिलते हो
सब्ज़ाज़ार से तुम तो, मन मलंग में खिलते हो
तोहे ढूँढू जो हर गली, तोहे ढूँढू मैं हर शहर
रूठी हुई हैं मोसे क्यूँ, तेरी वो मुकद्दस मेहर
ज़िन्दगी ये पतंग मोरी, हवायें हैं सब ख़फ़ा
बन्दगी जो मलंग मोरी, जलाये यूँ हर दफ़ा
ख़्वाज़ा जी पिया मोरे, तड़पे जिया बिन तोरे
दिल में बस जाओं मोरे, आया हूँ दर पर तोरे
# रॉक-शायर
रूहानी – आध्यात्मिक
दरिया – नदी
पिया – प्रियतम
अरज़ – प्रार्थना
शाम-ओ-सहर – सुबह शाम
जफ़ा – धोखा, हानि
तक़दीर – भाग्य, नसीब
क़श्ती – नाव
तक़सीर – गुनाह, पाप
सब्ज़ाज़ार – हरा भरा
मुकद्दस – पवित्र
मेहर – कृपा
“दर्द की है इन्तिहा”
रातें घटती नही
काटे कटती नही
दर्द की है इन्तिहा
बाँटे बटती नही
“नही जो कोई तो, अपने ही साथ हो लिया”
महफ़िल देखकर ही, यूँ खुश हो लिया
सफ़र तन्हा था, सो साथ तेरे हो लिया
दिल तो आख़िर दिल है, ये पागल दीवाना
कभी मुस्कुराया जो, कभी यूँ रो लिया
जाना है इक दिन तो, यहाँ से बहुत दूर
फिर कब्र को याद कर, ज़मीं पे सो लिया
खिल उठे जिस से, बंजर ये रूह मेरी
ख़ुशी का वो बीज, फिर से मैंने बो लिया
खो गया मुझमें, ना मिला वो ‘इरफ़ान’
नही जो कोई तो, अपने ही साथ हो लिया
“ये दिल शायराना”
दर्द भुलाकर वो अपने, सबको यूँ हँसाना
ग़म के ख़जानों से भी, खुशियाँ ढूँढ लाना
कभी पागल दिवाना, कभी आशिक मस्ताना
अजब गजब सा है, ये दिल शायराना ।
बातों में इसकी, कभी ना तुम आना
महंगा पङ जायेगा, इसको आज़माना
हसीं शोख़ ख़ताये, और गुनगुनाना
मीर की ग़ज़ल सा, ये दिल शायराना ।
रूठना, मनाना, फिर से मुस्कुराना
सोहबत में जिसकी, लगे सब सुहाना
नाज़-ओ-अंदाज से, यूँ खिलखिलाना
गुलज़ार की तरह, ये दिल शायराना ।
इश्क़ के इम्तिहां, हँसते हुए दे जाना
दर्द के समन्दर, पल भर में पी जाना
ख़ुश्क़ आँखों से यूँ, बूँदे छलकाना
एहसास की ज़ुबां, ये दिल शायराना ।
© रॉक-शायर
“इस कदर कुशादा, मेरे ज़ज्बात है”
इस कदर कुशादा, मेरे ज़ज्बात है
हिज्र में अब क़ैद, मेरे दिन रात है
# रॉक शायर
कुशादा – विस्तृत, फैला हुआ
ज़ज्बात – संवेदना
हिज्र – विरह
क़ैद – अधीनता, बंधना, दासत्व
“कुछ पल तो दे मुझे”
“ख़लाओं का मुसाफिर”
ख़्वाबों का मक़ाबिर, ख़्यालों से मुतासिर
सहरा में भटक रहा, ख़लाओं का मुसाफिर…
कभी शहरयार है वो, कभी घर बार है वो
खुद से लड़ता हुआ, जुनूनी हर बार है वो
ख़ामोशी तोड़ता हुआ, राहें सब मोड़ता हुआ
खुश्क़ज़दा लबों पर, आहें सब जोड़ता हुआ
जफ़ाओं का मनाज़िर, इरादों से मुतासिर
सहरा में भटक रहा, ख़लाओं का मुसाफिर…
कभी तलबगार है वो, कभी गुनाहगार है वो
नफ़्स से लड़ता हुआ, अपना मददगार है वो
ख़्वाहिशें फाड़ता हुआ, रंजिशें सब झाड़ता हुआ
अधजली रूह से अब, साज़िशें सब झाड़ता हुआ
ख़्वाबों का मक़ाबिर, ख़्यालों से मुतासिर
सहरा में भटक रहा, ख़लाओं का मुसाफिर
सहरा में भटक रहा, ख़लाओं का मुसाफिर ।।
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# रॉक शायर
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— शब्द सन्दर्भ —
ख़ला – अंतरिक्ष, रिक्त स्थान
मुसाफिर – यात्री, घुमंतू, ख़ानाबदोश, घुमक्कड़
ख़्वाब – स्वप्न, सपना
मक़ाबिर – मक़बरा, मज़ार
ख़्याल – विचार, कल्पना, सोच
मुतासिर – प्रभावित
सहरा – जंगल, वन, अरण्य, कानन
शहरयार – शासक, राजा, बादशाह
जुनूनी – उन्मादी, पागल
ख़ामोशी – चुप्पी, मौन
खुश्क़ज़दा लब – ख़ामोश से रूखे होंठ
जफ़ा – निर्दयता, अन्याय, अत्याचार
मनाज़िर – मंज़र, दृश्य
तलबगार – इच्छुक, अभिलाषी
गुनाहगार – पापी
नफ़्स – इन्द्रिय, रूह, वुजूद, अस्तित्व
ख़्वाहिश – कामना, अभिलाषा
रंजिश – द्वेष, बदला लेने की भावना
रूह – आत्मा
साज़िश – षड़यंत्र, चाल, छल कपट
“दर पर तेरे, आज फिर आया हूँ मैं”
दर पर तेरे, आज फिर आया हूँ मैं
अर्ज़ियाँ वो सब, सीने में लाया हूँ मैं
आँखों में अश्क़, दिल में तौबा लिए
गुनाहों में शामिल, बेज़ा साया हूँ मैं
रूह है नम मेरी, दर्द-ओ-ग़म से भरी
बेशुमार ख़ताओं का, सरमाया हूँ मैं
मन्नतें तू सब, क़ुबूल कर ले या रब
खुद से रूठा, हालात का सताया हूँ मैं
गुज़ारिश है, बख़्श दो मुझे या मौला
गुमनाम ज़र्द आहों में, नुमायां हूँ मैं
# रॉक-शायर
—शब्द सन्दर्भ—
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दर – दरवाजा, चौखट, द्वार, डेवढ़ी, देहली
अर्ज़ियाँ – प्रार्थनाएं, दरख़्वास्त, विनती
अश्क़ – आंसू
तौबा – प्रायश्चित, कफ़्फ़ारा
गुनाह – पाप
बेज़ा – गलत, अनुचित, बुरा
साया – प्रतिबिम्ब, छाया, अक्स, परछाई
रूह – आत्मा
नम – गीलापन, सीलापन, आद्रता
दर्द-ओ-ग़म – दुःख दर्द, मुश्किल परेशानी
बेशुमार – बहुत ज्यादा, बहुतायात
ख़ताओं – गलतिया
सरमाया – पूँजी, जमा धन
मन्नत – मुराद, मन से मांगी गयी, चाही गयी
क़ुबूल – स्वीकार
या रब/या मौला – ऐ खुदा, ऐ ईश्वर
हालात – परिस्थिति
गुज़ारिश – विनती, प्रार्थना
बख़्श देना – माफ़ कर देना, बरी कर देना, अता कर देना
गुमनाम – नामरहित, अज्ञातकृत
ज़र्द – पीला पड़ा हुआ, रंग उड़ा हुआ, फीका
आहें – कसक, दुःख व्यक्त करती दीर्घ श्वास
नुमायां – ज़ाहिर, प्रत्यक्ष, प्रकट
“भारतीय सेना के जवान”
मुल्क है मज़हब जिनका, मुल्क जिनकी आन
परमवीर है वो सबसे, भारतीय सेना के जवान
सरहद के ये पहरेदार, शौर्य दिखाते हर बार
शूरवीर है वो सबसे, भारतीय सेना के जवान
देश की खातिर सदा, प्राणो को न्योछावर करे
कर्मवीर है वो सबसे, भारतीय सेना के जवान
आख़िरी साँस तक, वतन की हिफाज़त करते
धर्मवीर है वो सबसे, भारतीय सेना के जवान
ग़ज़ल से आज उन्हें, सलामी दे रहा ‘इरफ़ान’
शूरवीर है वो सबसे, भारतीय सेना के जवान
“मुझसे मुझको रिहा कर दे”

दर्द से मुझको ज़ुदा कर दे
मुझमें मुझको फ़ना कर दे
सुन ले या रब तू इल्तिज़ा
सुकून मुझको अता कर दे
रंज-ओ-ग़म का है पहरा
उसको तू अब धुआँ कर दे
भटक रही ये रूह इलाही
साँसें इसको अता कर दे
जुनूं का रंग है सूफ़ियाना
लहू में इसको रवां कर दे
दीदार मुझे हो जाये मेरा
क़ुबूल ये अब दुआ कर दे
फ़क़त अरज़ है या मौला
मुझसे मुझको रिहा कर दे
“एक नादान परिंदा था वो”
एक नादान परिंदा था वो
एक नादान परिंदा था वो
पतंग के माँझे से यूँ लिपटा हुआ
आज मैंने एक कबूतर देखा
मर कर कब का सूख चुका है
माँझे से दोनों पंख कटे हुए
बहुत फड़फड़ाया होगा शायद
आज़ाद होने को
पर ना मालूम था उसे
इस जाल के बारे में
इंसान के लिए जो
महज एक खेल है
मनोरंजन का साधन
परिंदे ने ना सोचा था कभी
पतंग की लूटमार का ये खेल
इक दिन, यूँ मौत का खेल बन जायेगा
वो तो बस साँझ ढले उड़ता हुआ
अपने घर लौट रहा था वापस
पतंगों कि इस बाजी में
जान कि बाजी हार गया
कुछ नज़र ना आया उसे
माँझे में बस
यूँ उलझता ही चला गया
आखिरी सांस तक फड़फड़ाता रहा
और आखिरकार दम तोड़ दिया
माँझे से यूँ लटक गया
जैसे मुंडेर से लटकी हो कोई कटी पतंग
दूर पीपल पर बैठे हुए चील कौए
बदन को यूँ नौंच नौंच कर खा गए
जो बचा उसे धूप सुखा गई ।
अब तो सिर्फ माँझा लटका है अकेला
किसी कबूतर के निशां नहीं है उस पर
गुनाह यही रहा शायद
एक नादान परिंदा था वो
बस एक नादान परिंदा था वो ।।
“युद्ध के लिए तैयार हो जा”
युद्ध के लिए तैयार हो जा
रथ पर अपने सवार हो जा
ग़ैब से हासिल कर मदद
रूहानी तू इक़रार हो जा
बन जा लपट, फूँक दे सब
आतिशी इक शरार हो जा
दरिया भी तू, ज़रिया भी तू
बंजर में गुलजार हो जा
रब हो जाये मेहरबां फिर
इबादत बेशुमार हो जा
रश्क़ मत कर औरों से तू
फ़क़त यूँ इज़हार हो जा
खुद को पहचान ले अब
अपना ही तू यार हो जा
“लाइफ की तो, लगी पड़ी हैं”
लाइफ की तो, लगी पड़ी हैं
किस्मत साली, गले पड़ी हैं
बेतुकी सी, ख़्वाहिश लिए
कब से यूँ, ज़िद पर अड़ी हैं
देखा जब से, ख़्वाब इसने
तब से, इक टांग पे खड़ी हैं
ख़ुशी ग़म की, मिज़ वेज
कभी ताज़ा, कभी ये सड़ी हैं
गुज़रे लम्हें, याद कर फिर
खुद से यूँ, हर रोज लड़ी हैं
बेवजह नहीं ये ‘रॉकशायर’
तज़ुर्बे में, बड़े बड़ों से बड़ी हैं
“कुछ कहना है मुझे अब तुमसे”
कुछ कहना है मुझे अब तुमसे
नहीं रहना यूँ चुप अब खुद से
तुमसे बेपनाह मुहब्बत करता हूँ
तुम पर बेइंतहा मैं अब मरता हूँ
शब के अंधेरों में तुम्हें पुकारता हूँ
दिन के उजालों में तुम्हें निहारता हूँ
नज़र आकर भी नज़र नहीं आती हो
दूर होकर यूँ कितना मुझे तड़पाती हो
तुम्हारे साथ कुछ पल जीना चाहता हूँ
तुम्हारे दर्द को मैं अब पीना चाहता हूँ
अल्फ़ाज़ सजाकर रोज तुम्हें याद करता हूँ
एहसास छुपाकर हर दिन ही आहें भरता हूँ
नहीं होकर भी कहीं तुम मुझमें कहीं हो
ज़ुदा होकर भी कहीं तुम मुझमें बसी हो
बस इतना कहना है मुझे ये तुमसे
ज़िंदा हूँ मैं हर पल, तेरे ख़्याल से
“शब कटती नहीं”
शब कटती नहीं, तन्हा अकेले
गुम हो गए, वो सब हसीं मेले
“रिहा कर उस दर्द से”
दिन तो जैसे तैसे करके, यूँही गुज़र जाता है
रात होते ही मगर, तन्हा ये दिल घबराता है
जीने की कोई वजह, अब तू ही बता दे खुदाया
या रिहा कर उस दर्द से, सीने में जो बसता है
“खुशीयों का प्रोमो कोड चाहिए”
ज़िन्दगी के एप को, खुशीयों का प्रोमो कोड चाहिए
घिसा पिटा नहीं, फंकी स्टाइलिश और ऑड चाहिए
बहुत जी लिए टू जी स्पीड की तरह, अब तो बस
जुनून की डोज़, विद एक्सट्रीम पावर मोड चाहिए
ख़्वाबों की अमेज़िंग जर्नी, आसान करने के लिए
इरादों से फुल टू अटैच्ड, क्रेज़ीपन का नोड चाहिए
लाईफ के गॉल को, पाना हो गर हर हाल में तो
ख़्वाहिशों से फिर डायरेक्ट, थ्री फेज़ लोड चाहिए
गुज़ारिश-ए-डिवाइस, बस इतनी सी है ‘इरफ़ान’
लूजर सा नहीं कोई, विनर सा अब कोड चाहिए ।।
*** शब्द संदर्भ ***
———————
प्रोमो कोड – प्रचार संकेत
एप – एप्लीकेशन, अनुप्रयोग
फंकी – मस्त
स्टाइलिश – बना ठना, छैल छबीला
ऑड – विषम, अजीब
टू जी स्पीड – द्वितीय पीढ़ी मोबाइल इंटरनेट गति
जुनून – जोश, उत्साह, राग, लालसा
डोज़ – ख़ुराक, मात्रा
विद – के साथ
एक्सट्रीम – चरम, परम
पावर – ऊर्जा, शक्ति
मोड – प्रणाली, प्रकार, अवस्था
ख़्वाब – सपना, स्वप्न
अमेज़िंग जर्नी – अद्भुत यात्रा
इरादा – नियत, प्रयोजन
फुल टू अटैच्ड – पूरी तरह जुड़ा हुआ, पूर्ण संलग्न
क्रेज़ीपन – पागलपन, जुनूनियत, सनकपन
नोड – आसंधि, गाँठ
लाईफ – जीवन, ज़िंदगी
गॉल – लक्ष्य
ख़्वाहिश – इच्छा
डायरेक्ट – सीधा
थ्री फेज लोड – त्रिकला भार
गुज़ारिश – प्रार्थना, विनती
डिवाइस – युक्ति, यंत्र
लूजर – हारा हुआ, पराजित
विनर – विजेता, विजयी
“स्वयं का तू अब, आह्वान कर ले”
शक्ति का तू अपनी, ज्ञान कर ले
निर्भीक होकर, ये विषपान कर ले
रक्त में तेरे, है वो अनल सी तपन
लक्ष्य का बस अपने, ध्यान कर ले
नक्षत्र करे, ये सब परिक्रमण तेरा
स्वयं का तू अब, आह्वान कर ले ।
प्रयास करता जा, निंदा सुनता जा
रूह पे घाव को, यूँ ज़िंदा चुनता जा
खामोशियों से हर पल उलझते हुए
खुद में खुद की वो पहचान कर ले
मन में तेरे, है वो सूरज सी अगन
शत्रु का बस अपने, ध्यान कर ले
पर्वत करे, ये सब अनुसरण तेरा
स्वयं का तू अब, आह्वान कर ले ।
परिश्रम करता जा, धैर्य रखता जा
जीवन रणक्षेत्र है, शौर्य चखता जा
बेचैनियों से हर दिन झगड़ते हुए
प्राण का तू अपने, उत्थान कर ले
श्वास में तेरे, है वो प्रचंड सी पवन
इष्ट का बस अपने, ध्यान कर ले
सागर करे, ये सब अनुकरण तेरा
स्वयं का तू अब, आह्वान कर ले
स्वयं का तू अब, आह्वान कर ले ।।
शक्ति – बल, ताक़त, मज़बूती, कड़ापन, बूता
ज्ञान – प्रतीति, बोध, विद्या, परिचय, सूचना
निर्भीक – निडर, बेखौफ, अभय
विषपान – जहर पीना
रक्त – खून, लहू, रूधिर
अनल – आग, अग्नि, पावक, ज्वाला
तपन – आंच, गर्मी, ताप
लक्ष्य – निशाना, प्रयोजन, काम, मकसद
ध्यान – सोच, समाधि, विचार, चिंता, प्रगाढ़
नक्षत्र – सितारें, ग्रह
परिक्रमण – घूमना, चक्कर लगाना, घूर्णन
स्वयं – खुद, निजी व्यक्तित्व, अपना
आह्वान – बुलावा, मांग, वंदन, मंगलाचरण, सम्मन
प्रयास – कोशिश, चेष्टा, श्रम
निंदा – आक्षेप, तिरस्कार, आलोचना, झिड़की
रूह – आत्मा
घाव – चोट, ज़ख्म
ज़िंदा – जीवित
अगन – आग, अग्नि, ज्वाला, अनल, पावक
शत्रु – दुश्मन, बैरी
पर्वत – पहाड़
अनुसरण – पीछे पीछे चलना, पीछा, पालन
उत्थान – सुधार, पुनर्जन्म
श्वास – सांस, श्वसन
प्रचंड – उन्मत्त, प्रचंड, कट्टर, उन्मादपूर्ण, पागल, उद्धत
इष्ट – सहाययुक्त, अनुग्रह प्राप्त, प्रिय
अनुकरण – नक़ल
“क़ुव्वत-ओ-क़रार”
“फिर भी मुझसे मेरा पता पूँछ रहे हो”
तूफां से हवाओं का पता पूँछ रहे हो
अनजाने में की गई ख़ता पूँछ रहे हो
वहशत ने इस कदर अंधा किया कि
खुदा से उसकी वो अता पूँछ रहे हो
मयस्सर ना कहीं वो फ़ज़ा वो घटा
ज़र्द से सब्ज़गी का पता पूँछ रहे हो
ढूँढते हुए उस हद तक जा पहुँचे कि
ग़मों से खुशीयों का पता पूँछ रहे हो
गुमशुदा मैं इक अरसे से हूँ ‘इरफ़ान’
फिर भी मुझसे मेरा पता पूँछ रहे हो
“नबी-ए-क़रीम”
नबी-ए-क़रीम, सरकार-ए-मदीना
सादापन सच्चाई, है जिनका नगीना
अख़्लाक़ रहगुज़र, नेकीयाँ सफ़ीना
बेहतरीन ज़िन्दगी का नायाब नमूना
ईमान-ओ-शरीअत, उम्दा तरीका
ताक़यामत ज़िंदा, सुन्नत सलीक़ा
निदा-ए-हक़, इस्लाम का सरमाया
रहबर, रहनुमा, रूहानी इक साया
नबीयों में फ़राज़, मौला के हमराज़
हबीब-ए-खुदा, उम्मत के सरताज
ज़मीं, जन्नत, बने ये सब उनके लिए
चाँद, सूरज, बने है सब उनके लिए
मुक़द्दस पाकीज़ा, हयात एक तज़ुर्बा
फ़ैज़-ए-मुहम्मद, बुलंद नेक मर्तबा
या मुस्तफ़ा, सरवर-ए-कायनात
अरज़ है ये, कर दो मुझे मुझसे रिहा
नबी – ईशदूत, अवतार, रसूल, पैग़म्बर
क़रीम – कृपालु, मेहरबान, ईश्वर का एक नाम
सरकार – शासक, बङो के लिए संबोधन का शब्द
मदीना – नगर, शहर, अरब का वह प्रसिद्ध शहर
नगीना – रत्न, नग, कीमती पत्थर
अख़्लाक़ – सद्व्यवहार, सदाचार
रहगुज़र – मार्ग, पथ
नेकीयाँ – सच्चरित्रता, अच्छाई
सफ़ीना – नौका, नाव, कश्ती, किताब
नायाब – बेशकीमती, अमूल्य
नमूना – आदर्श, उपमा
ईमान – निष्ठा, धर्म, श्रद्धा, विश्वास, यक़ीन
शरीअत – क़ानून, न्याय, नियम
ताक़यामत – क़यामत तक
सुन्नत – वह काम जो पैग़म्बर मुहम्मद साहिब का तरीका, नियम, क़ायदा, पद्घति
सलीक़ा – शिष्टता
निदा-ए-हक़ – सच्चाई की आवाज़
सरमाया – पूँजी, धन, संपत्ति
रहबर – मार्गदर्शक
रहनुमा – नेता, पथदर्शक
रूहानी – आध्यात्मिक
साया – परछाई, प्रतिबिंब, छाया
फ़राज़ – ऊँचाई, उच्चता
मौला – अल्लाह, खुदा
हमराज़ – सब राज़ जानने वाला
हबीब-ए-खुदा – खुदा का प्रिय
उम्मत – विशेष अवतार को माननेवाला समुदाय
सरताज – शिरोमणि, नायक, मालिक
मुक़द्दस – पवित्र, पाक़, पुनीतात्मा, बुज़ुर्गी
पाकीज़ा – निर्मल, स्वच्छ, शुद्ध
हयात – जीवन, ज़िंदगी
तज़ुर्बा – अनुभव
फ़ैज़ – यश, कीर्ति
बुलंद – ऊँचाई
मर्तबा – पद, श्रेणी, वर्ग, इज़्ज़त, दर्जा
मुस्तफ़ा – हज़रत मुहम्मद साहब का ख़िताब
सरवर – मुखिया, अधिपति, सरदार
कायनात – सृष्टि
अरज़ – प्रार्थना, विनती
रिहा – स्वतंत्र
“सरवर-ए-कायनात”
सदक़े में जिनके बनाई गई, ये सारी कायनात
अल्लाह के रसूल, वो है सरवर-ए-कायनात
सद़ाकत के पयम्बर, इंसानियत के रहबर जो
इस्लाम के रहनुमा, वो है सरवर-ए-कायनात
जन्नत की फ़ज़ा जिन्हें, कहती यूँ रोज़ मरहबा
अल्लाह के लाडले, वो है सरवर-ए-कायनात
मुहम्मद-मुस्तफ़ा, प्यारे नबी के प्यारे है नाम
हुज़ूर-ए-अक़्दस, वो है सरवर-ए-कायनात
लक़ब जिनका आये सदा, ख़ुदा के साथ यहाँ
अल्लाह के हबीब, वो है सरवर-ए-कायनात
मर्तबा बुलंद सबसे, दुनिया ये बनी है जब से
नबियों के सरदार, वो है सरवर-ए-कायनात
प्यारे आक़ा पे, दुरूद-ओ-सलाम यूँ ‘इरफ़ान’
सरकार-ए-मदीना, वो है सरवर-ए-कायनात ।
सरवर – मुखिया, अधिपति, सरदार
कायनात – सृष्टि
सदक़ा – न्यौंछावर, दान, ख़ैरात
रसूल – अवतार, ईश्वरीय संदेश वाहक
सद़ाकत – सच्चाई, यथार्थता, सत्यता
पयम्बर – पैग़म्बर, पैग़ाम या सन्देश देने वाला
रहबर – मार्गदर्शक
रहनुमा – नेता, पथदर्शक
जन्नत – स्वर्ग, फ़िरदौस
फ़ज़ा – वातावरण, रौनक, शोभा, बहार
मरहबा – धन्य, शाबाश, बहुत खूब, वाह
मुहम्मद – आख़िरी नबी पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब का शुभ नाम, स्तुत, प्रशंसित, सराहा गया
मुस्तफ़ा – पवित्र, निर्मल, स्वच्छ, पुनीत, शुद्ध, हज़रत मुहम्मद साहब का ख़िताब
नबी – ईशदूत, अवतार, पैग़म्बर
हुज़ूर – संबोधन के लिए एक आदरसूचक शब्द
अक़्दस – बहुत पवित्र, बहुत कल्याणकारी
लक़ब – उपमा, उपाधि, सम्मानित ओहदा
हबीब – सखा, प्रिय, माशूक, दोस्त, प्रेमपात्र
मर्तबा – पद, श्रेणी, वर्ग, इज़्ज़त, दर्जा
बुलंद – ऊँचा, उच्च, उतंग
सरदार – नायक, अध्यक्ष, स्वामी
आक़ा – स्वामी, प्रभु, मालिक, अध्यक्ष
दुरूद – दुआ विशेषतः पैग़म्बर के लिए
सलाम – प्रणाम, नमस्कार
सरकार – शासक, हुकूमत, बङे व्यक्तियों के लिए संबोधन का शब्द
मदीना – नगर, शहर, अरब का वह प्रसिद्ध शहर जहाँ हज़रत मुहम्मद साहब ने हिज़रत के बाद अपनी बाक़ी ज़िन्दगी बसर की
“सरकार की आमद मरहबा”
“मन मेरा, आवारा मनमौजी”
मन मेरा, आवारा मनमौजी
खानाबदोश, सा इक फौजी
लम्हों के, रूख़सार छूकर
पकड़ता यूँ, बातों की नोजी
अंदाज़ में, शिद्दत है इतनी
लगता हो, जैसे कोई खोजी
वक़्त की धूप का मुसाफिर
तलाश रहा है अपनी रोज़ी
बेचैनियाँ पीकर बड़ा हुआ
रगों में भरी, जुनूं की डोजी
ख़्वाबों ख़्वाहिशों की सदा
बात ये माने, हाँ जी हाँ जी
दर्द की गुंजाइश को अब
कहे यूँ सीधे, ना जी ना जी
अपनी शर्तों पर ही जीता
नहीं करता, कोई सौदेबाज़ी
ख़ुद पर है, यक़ीं इतना
जीतेगा, अब हर बाज़ी
सुनकर, रूमानी तराने
झूमे नाचे, वाह जी वा जी
लफ़्ज़ों के, रूख़सार छूकर
पकडे यूँ, बातों की नोजी
“सफ़र नया, हमसफ़र नया, नया है अब कारवां”
सफ़र नया, हमसफ़र नया, नया है अब कारवां
शहर नया, रहगुज़र नया, नया है अब रास्ता
जाना कहाँ, किस ओर है, नही कोई भी खबर
मंज़र नया, मर्क़ज़ नया, नया है अब काफ़िला
इरादों की ज़मीं पर, ख़्वाबों की बगिया खिला
शज़र नया, गुलशन नया, नया है अब बागबां
एहसास की नदी में यूँ, बहता जा तू धीरे धीरे
शऊर नया, दस्तूर नया, नया है अब जायज़ा
ज़िन्दगी का फ़लसफा, रूहानियत में है छुपा
समर नया, सरवर नया, नया है अब पासबां
उङने को तू आज़ाद है, पंख अपने खोल ज़रा
हुनर नया, परवाज़ नया, नया है अब आसमां
मन की आँखों से कभी, देख तू खुद को यहाँ
असर नया, अंदाज़ नया, नया है अब आईना
राह पर अब अपनी, चल तू फिर से ‘इरफ़ान’
सफ़र नया, रहबर नया, नया है अब कारवां
© RockShayar
सफ़र – यात्रा
हमसफ़र – साथी
कारवां – समूह, दल, जत्था, टोली
रहगुज़र – मार्ग, पथ, रास्ता
मंज़र – दृश्य
मर्क़ज़ – केंद्र, गढ़
काफ़िला – समूह, जत्था, दल, टोली
बगिया – छोटा बगीचा
शज़र – पेड़, दरख़्त
गुलशन – बाग़, बगीचा
बागबां – बाग़ की देखभाल करने वाला, माली
एहसास – संवेदना, महसूस करना
शऊर – विवेक, ज्ञान
दस्तूर – प्रथा, रीति रिवाज
जायज़ा – अनुमान
फ़लसफा – दर्शन
रूहानियत – आत्मिक, आत्मीय
समर – युद्ध, रण, जंग
सरवर – मालिक, स्वामी, नाथ
पासबां – निगरानी रखने वाला, निगेहबान
आज़ाद – स्वतंत्र,
हुनर – फ़न, कला, कमाल
परवाज़ – उड़ान
असर – प्रभाव
अंदाज़ – शैली, लहजा, ढंग
आईना – दर्पण, शीशा
राह – मार्ग, पथ, रास्ता
रहबर – पथदर्शक, मार्गदर्शक, रास्ता दिखने वाला
“फिर ना ये कल होगा, फिर ना ये पल होगा” (अलविदा 2014, सलाम 2015)
आज है, अब है, जीयो इसे जी भरकर खूब
फिर ना ये कल होगा, फिर ना ये पल होगा
चंद लम्हों से बनी, ज़िन्दगी दुल्हन सी सजी
वक्त गुज़रता जा रहा, फिर ना ये पल होगा
कभी शाख़सार लगे, कभी लगे यूँ ग़मज़दा
जीवन ढलता जा रहा, फिर ना ये पल होगा
खुशीयों की ज़मीं पे, ख़्वाबों के फूल खिले
मन मचलता जा रहा, फिर ना ये पल होगा
समय रथ पर सवार, कह रहा यूँ ‘इरफ़ान’
काल बहता जा रहा, फिर ना ये पल होगा
“वो ज़िन्दगी ही क्यां, जिसमें ख़्वाब ना हो”
वो ज़िन्दगी ही क्यां, जिसमें ख़्वाब ना हो
वो बन्दगी ही क्यां, जिसमें आदाब ना हो
मुतमईन हो जाये रूह, देखकर यूँ ज़ीनत
वो सादगी ही क्यां, जिसमें हिजाब ना हो
मुतासिर है निगाहें, मुसाफिर ये सब राहें
वो सब्ज़गी ही क्यां, जिसमें शादाब ना हो
महदूद सी ख़्वाहिश, महबूब की आराइश
वो पेशगी ही क्यां, जो यूँ बेहिसाब ना हो
मुख़्तसर से लम्हें, मुन्तज़र है सब रस्मे
वो बानगी ही क्यां, जिसमें इन्तिख़ाब ना हो
मुहब्बत में नज़ाकत, मुरव्वत सी नफ़ासत
वो तशनगी ही क्यां, जो खुद सैराब ना हो
मरासिम है टूटे हुए, मुहाफ़िज सब रूठे हुए
वो आवारगी ही क्यां, जिसमें सैलाब ना हो
सुनकर दिल की निदा, कह रहा यूँ ‘इरफ़ान’
वो तीरगी ही क्यां, जिसमें इन्क़िलाब ना हो
“आज मैं, क़ब्रिस्तान गया”

हाथों में, सरसब्ज़ फूल लिए
दिल में, ज़िक्र-ओ-फ़िक्र लिए
आज मैं, क़ब्रिस्तान गया
कायम है जो, तालाब के किनारे पर
बुजुर्गों की क़ब्र है, वहाँ पर ।
पहले, आहिस्ता सलाम करके
दामन में, पाकीज़ा गुलाब भरके
चढाये वो सब, इक इक करके
दुरूद-ओ-फातिहा पढते हुए
ज़िंदगी की वो हक़ीक़त
महसूस की, आज मैंने
कि, मिट्टी से बना ये ज़िस्म
मिट्टी में मिल जायेगा
इक दिन आख़िर ।
दुआ में उठे, जब दोनों हाथ
क़ल्ब में थी, मग़फिरत रवां
ज़हन्नुम से पनाह, ज़न्नत की निदा
गुनाहों से बख्श़िश, ईमान की सदा
सीने में दर्द, अक़ीदत की ग़ुज़ारिश
आँखों में अश्क़, रहमत की ख़ाहिश ।
अब्बाजी की क़ब्र पर
यूँ घुटने टेककर
काफ़ी देर तक मैं, रोता रहा
गुफ्त़गू करनी थी, कुछ उनसे ।
जब मैं पैदा हुआ
उससे दो साल पहले ही
उनका इंतेकाल हो गया
शिकवा रहा, ये सदा ही दादाजी
ना मैं, आपकी उंगली पकङ सका
ना मैं, आपके साथ खेल सका
ना मैं, आपसे कहानियाँ सुन सका
मलाल है जिसका, आज तक मुझे
बहुत याद आती है, आपकी मुझे
मैं बिल्कुल, आपकी तरह दिखता हूँ
अम्मी ये अक्सर, कहती रहती है
अल्लाह आपकी रूह को, सुकूं अता करे
आपकी क़ब्र में, ज़न्नत की हवाए चलाए ।
ज़ुबां पर, कलमा-ए-तौहीद सजाकर
दिल में, यूँ तौबा अस्तग़फार बसाकर
आज मैं, क़ब्रिस्तान गया ।।
“मिर्ज़ा असदुल्लाह खाँ ‘ग़ालिब’ (Tribute to Father of Poetry Mirza ‘Ghalib’)
जैसे ज़िस्म अधूरा, रूह के बिना
जैसे दिन अधूरा, रात के बिना
जैसे हुस्न अधूरा, यार के बिना
जैसे वस्ल अधूरा, दीदार के बिना
जैसे ख़्वाब अधूरा, ख़्याल के बिना
जैसे जवाब अधूरा, सवाल के बिना
जैसे आसमां अधूरा, सितारों के बिना
जैसे बागबान अधूरा, बहारों के बिना
वैसे ही अदब अधूरा है, ग़ालिब के बिना
एक शख़्स नही, मुकम्मल अंदाज़ था वो
फ़क़त रक्स नही, मुसलसल साज़ था वो
उर्दू फ़ारसी में डूबा, ख़ामोशी सुनता हुआ
शायरी के मौज़ूअ में, सरगोशी चुनता हुआ
अशआर कहे जो भी, ज़ाविदां वो शेर बन गए
इक़रार लिखे जो भी, दर्द वो सब ग़ैर बन गए
फ़क़त नौशा यूँही नही, बेहतरीन दर्ज़ा था वो
लक़ब असद यूँही नही, ज़हीन मिर्ज़ा था वो
रातों में ताबीर हुआ, रूह की तहरीर हुआ
कागज़ के पन्नों पर, हर्फ़ सी तसवीर हुआ
अल्फ़ाज़ कहे जो भी, बा-अदब वो अफ़जल हुए
एहसास लिखे जो भी, उम्दा नज़्म-ओ-ग़ज़ल हुए
जैसे अक्स अधूरा, आईने के बिना
जैसे लफ़्ज़ अधूरा, मायने के बिना
जैसे जाम अधूरा, लब के बिना
जैसे नाम अधूरा, रब के बिना
जैसे मर्द अधूरा, औरत के बिना
जैसे फ़र्द अधूरा, कुव्वत के बिना
जैसे क़ल्ब अधूरा, धङकन के बिना
जैसे इश्क़ अधूरा, तङपन के बिना
वैसे ही सुख़न अधूरा है, ग़ालिब के बिना
ऐसे अज़ीम-ओ-शान शायर को, मेरा सलाम
ऐसे अज़ीम-ओ-शान शायर पर, मेरा कलाम ।।
“मिला आज, मैं अपने घर से”
मिट्टी का, यह पुराना चूल्हा
बैठा है ऐसे, जैसे कोई दूल्हा
सीने पर, इक अलाव जलाये
सिर पर, काली हांडी चढाये
करछू, चिमटा, फुँकनी संग
सिगङी में, कोयला चेताये
चाय बनी, खुद झटपट से
दूध, इलायची, अदरक से
माँ के हाथों की, बरकत से
तरस रहा, जो इतने दिन से
मिला आज, मैं अपने घर से ।
खुला खुला है, आंगन यहाँ
धुला धुला सा, सावन यहाँ
खेतों से आये, सौंधी खुशबू
खिला खिला सा, जीवन यहाँ
बचपन की यादों का झरोखा
हर दिन यहाँ, लगता अनोखा
ज़िन्दगी दौङे, खुद सरपट से
ख़्वाबों ख़्यालों की, चाहत से
अब्बू के कदमों की, आहट से
ज़ुदा रहा, जो इतने बरस से
मिला आज, मैं अपने घर से ।।
“तुझको मैं, हर जगह ढूँढता हूँ”
“एक अटल व्यक्तित्व है वो”
भारत रत्न आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को समर्पित मेरा लघु काव्य प्रणाम…
एक अटल व्यक्तित्व है वो
विचारों का अस्तित्व है वो
सत्ता के अंधेर गलियारों में
उज्ज्वल और प्रदीप्त है वो
शख़्सियत ऋतु बसंत जैसी
सियासत में छवि संत जैसी
सत्य पथ पर अडिग खङा
प्रबुद्ध प्रखर साधुत्व है वो
संवेदनाओं से मन मीत ले
कविताओं से दिल जीत ले
जीवन शिखर पर आरोहित
सम्पूर्ण विश्व बंधुत्व है वो
समय की झंकार से बना
एक अटल व्यक्तित्व है वो