सुन, ओ वहशी दहशतगर्द
नहीं, तू कोई नेकदिल फ़र्द
कर रहा हूँ, ये तुझसे अर्ज़
वबा सा, तू लाइलाज मर्ज़
तदबीर कर ले, चाहे जो भी
नहीं उतरेगा, रूह से क़र्ज़
तूने दिये, माँओं को ज़ख्म
तूने किये, ख़्वाब सब भस्म
तूने जलाये, घर बार सारे
तूने बुझाये, मासूम तारें
तूने जो मारा, बेगुनाहों को
तूने वो काटा, बेकसूरों को
तूने उगला, सदा ही ज़हर
तूने बरपा, ज़मीं पर कहर
तूने बोये, नफ़रत के बीज
तूने किये, काम सब नीच
तूने किया, गुमराह सदा
तूने पिया, बस लहू यहाँ
तूने दिया है, बेमानी फतवा
तूने किया, इस्लाम को रुस्वा
तूने काटे, ज़िंदगी के पर
तूने बांटे, मुल्क और घर
दरिंदगी को, अपनी सदा
कहते आये, जिहाद यहाँ
गंदगी को, यूँ अपनी सदा
कहते आये, जन्नत यहाँ
सुन, ओ हब्शी दहशतगर्द
नहीं तू कोई, शेरदिल फ़र्द
इबादत कर ले, चाहे जो भी
नहीं उतरेगा, रूह से क़र्ज़ ।।
© रॉकशायर
(इरफ़ान अली खान)
वहशी – बर्बर
दहशतगर्द – आतंकवादी
फ़र्द – आदमी
अर्ज़ – कहना
वबा – महामारी
मर्ज़ – बीमारी
तदबीर – कोशिश
रूह – आत्मा
गुमराह – गलत राह पे ले जाना
फतवा – धर्म गुरू द्वारा धर्म संबंधी किसी विवादास्पद बात के संबंध में दिया हुआ शास्त्रीय लिखित आदेश
रुस्वा – अपमानित करना
जिहाद – ख़ुदा की राह में संघर्ष