क्रोध को वो अपने, तू अब पालना सीख ले
हालात सा खुद को, तू अब ढालना सीख ले
माँ ने जो सबक सिखाया, फिर से याद कर
परो से हवाओं को, तू अब काटना सीख ले
बंदिशों की सारी हदें, यूँ तोड़ दे, रूख़ मोड़ दे
रूह के लिबास को, तू बस कातना सीख ले
चंद रोज़ की मेहमान, है जो ज़िन्दगी तेरी
दर्द में भी खुशियाँ, तू यहाँ बाँटना सीख ले
याद रखे ये जमाना, ग़ज़ल कोई ऐसी बना
जुनूं को अशआर में, यूँ बस ढालना सीख ले