झुकी हुई ये पलकें तेरी, टूटा सा है दिल मेरा
लोबान सी है साँसे तेरी, रूठा सा ये दिल मेरा
इक दूजे की ख़ाहिश में, जलते रहे यूँही सदा
खिल उठे फिर से हम, ना रहे अब ग़मज़दा
दर्द के सियाह ये घेरे, रूख़ पर ज़ुल्फ़ों के पहरे
निगाहों से पढ़ लेता हूँ, आजकल मैं सब चेहरे
ख़लाओं में क़ैद है तू, तन्हाईयों में गुम हूँ मैं
जफ़ाओं में खोई है तू, बेचैनियों में गुम हूँ मैं
हर नज़र तू ही दिखे, हर बशर जो तू ही मिले
कायनात के ज़र्रे में, हर पहर अब तू ही खिले
अल्फ़ाज़ उतर आते है यूँ, कागज़ के सीने पर
एहसास मगर होता नहीं, अपने ही जीने पर
जिस्म ये मेरा अब, नक्श में तेरे यूँ गुमशुदा
रूह की गुज़ारिश है, तुझपे करू मैं जां फ़िदा
सहमी हुई पलके तेरी, टूटा सा है दिल मेरा
सुरमई दो आँखे तेरी, रूठा सा ये दिल मेरा
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(इरफ़ान अली खान)