आहट सुनकर ही जिसकी, बुझ जाये जलता दिया
स्टूडेंट्स का जानी दुश्मन, ये है एग्जाम-फोबिया
कितना भी पढ़ लो यहाँ, कितना भी रट लो यहाँ
शिकवा शिकायत हमेशा से, यही बस तो रहता है
ये पेपर हर दफ़ा ही, इतना अजनबी क्यूँ लगता है
पूरा सेमेस्टर इक पल में, यूँ हो जाता है बेगाना
जो कुछ याद था, लगता है सब गुज़रा ज़माना
अजब अजब सा जाने क्यूँ, हर मंज़र लगता है
ज़हन की वादियों में, सब कुछ बंज़र लगता है
एग्जाम हॉल तो लगता है जैसे, मौत का कुआँ
जरा सा भूले के, निकला फिर आंसर्स का धुँआ
इंविजिलेटर के रूप में, साक्षात प्रभु नज़र आते है
गिड़गिड़ाओं चाहे जितना, दया ना कभी ये दिखाते है
सीरत पढ़कर ही जिसकी, बुझ जाए जलता दिया
स्टूडेंट्स का जानी दुश्मन, ये है एग्जाम-फोबिया