ख़ुशबू का वो झोंका
कल साँझ ढले
साँसों की डोर थामे हुए
हौले हौले से यूँ
उतर गया इस रूह में
ना कोई शोर हुआ
ना कोई बेचैनी थी
बस इक नील समंदर
जम सा गया मुझमें कहीं…
एहसास का वो नूर
कल रात ढले
पलकों की डोर थामे हुए
धीमे धीमे से यूँ
उतर गया इन आँखों में
ना कोई ख़्वाब टूटा
ना कोई बेदारी थी
बस इक सर्द बवंडर
थम सा गया मुझमें कहीं…
© RockShayar