
बाज़ूओं पर हौसलों के पर लगाकर
उङ चला फिर से बँजारा मन मेरा
भटकते हुए नादां परिंदे की तरह
ख्वाबों के जहां से कई दफ़ा गिरा
आसमां छूने सौ बार फङफङाया
आखिर में परवाज़ का हुनर आ ही गया
हर चोट में सदा-ए-ज़िन्दगी नुमायाँ
मुश्किल हालात ने जीना सिखाया
रूह की ज़ीनत बन गया हैं जूनून
सिफ़ात होने लगी फिर शायराना
दर्द पीने की वो सलाहीयत आ गई
ज़ईफ होने लगी ख़लिश की दीवारें
साँसों से आ रही यूँ ख़ुशबू रूहानी
मौला के इश्क़ में बन गया मैं सूफ़ी
इरादों में हिम्मती ज़ज्बा जगाकर
बह चला फिर से आवारा मन मेरा
छलकते मचलते दरिया की तरह
कई दफ़ा बुझा साज़िश के झोंके से
बुलन्दी छूने हर बार फङफङाया
आखिर में परवाज़ का हुनर आ ही गया