एक हादसा, बड़ा ही दर्दनाक
बेगुनाहों के लहू से, यूं भीगा हुआ
हर तरफ मची है, इक भगदड़ सी
मासूम बच्चे, इस कदर डरे हुए है
हलक से, चींख भी नहीं निकल रही
सब हो रहे है, बदहवास से यहाँ
कोई इधर भाग रहा, कोई उधर छुप रहा
शायद, आज फिर कोई धमाका हुआ है
कितने घर, उजड़ गए है
कितनी मांगे, सूनी हो गई
कितने बच्चे, यतीम हो गए
कौन करेगा, इसका हिसाब यहाँ
बाज़ार, अस्पताल, मंदिर, मस्ज़िद
आखिर, कोनसी जगह बाक़ी है
अब जहाँ, ये हादसे नहीं होते
अधनंगी सैकड़ो लाशे, बिखरी हुई
भूखे बच्चे बिलख रहे, उनके पास
खौफनाक मंज़र फैला, चारो तरफ
हैवानियत का, जाने कैसा ये कहर
इंसानी शक्ल में, छुपे है कुछ भेड़िये
मासूम बन्दों को, जो गुमराह करते
नफरत का बारूद, ज़ेहन में भरते
उनमे से, कोई एक मिले तो पूछूँ
ये दरिंदगी तुम में, कब से है
दिखते तो तुम भी, एक इंसान ही हो
फिर मजहब को, क्यूँ करते हो बदनाम
हो जाओ ख़बरदार, अपने अंज़ाम से
हिसाब तो, ख़ुदा के घर होना है तुम्हारा
कभी तो होगी आखिर, अमन कि सहर
मौला मेरे सुन ले, ज़मीं पे तू रहम कर
एक हादसा, बड़ा ही शर्मनाक
इंसानियत कि मौत पे, यूं रोता हुआ