हर तरफ फैला हुआ है, यहाँ नफ़रत का ज़हर
जहाँ देखो नज़र आये, बस दहशत का कहर
यह कैसा दौर आ गया, कुदरत भी है हैरान
इंसान का दुश्मन यहाँ, खुद बन गया इंसान
ना कोई मज़हब है इसका, ना कोई पहचान
इंसान कि शक्ल में, छुप कर बेठा है शैतान
क्यूँ भटक रहे है आज, राहों से ये नौजवान
कोई भी नहीं है यहाँ, ठहर कर अब ये सोचे
मासूम से चेहरे, आखिर कैसे बन रहे हैवान
किसने बेठा दिया है, इनके ज़ेहन में शैतान
सियासतदारों को भी, कुछ तो सोचना होगा
आतंक के व्यापार को, बस यहीं रोकना होगा
नहीं तो कुछ भी नहीं बचेगा, कल हमारे पास
इक बारूद का ढेर, दम तोड़ती इंसानियत बस
सबको हक़ अपना मिले, ना हो कोई भेदभाव
इंसानियत के लिए, मिलकर सब करे प्रयास