ग़ज़ल और नज़्म, दोनों लिखता हूँ
फ़र्क़ बस इतना सा है
नज़्म में खुद रहता हूँ
ग़ज़ल में कोई और
दिल जब रोता है, अकेले में
अश्क़ो के दरिया में, भीगे हुए
चंद लफ्ज़ो से, बनती है नज़्म
सुलगते एहसास समेटे हुए
ग़ज़ल कि कहानी, कुछ अलग है
ज़िन्दगी के सच को, बयां करती
अनछुवे पहलुवों पर, नज़र फेरती
कभी आंसू, कभी ख़ुशी बिखेरती
शब्दो कि जमावट, इस तरह दिखती
जेसे सपनो का घर, बनाया हो किसी ने
एक ग़ज़ल में, सौ ज़िंदगियाँ छुपी हुई
महसूस जो कर सके, तो पता चले
नहीं तो बस, शब्दो का मायाजाल है
शायर और कवि, मैं दोनों हूँ
फ़र्क़ बस इतना सा है
शायरी में खुद बसता हूँ
कविता में कोई और