टूट कर बिखर गया, वक्त कि साज़िश में
वुजूद भी सहमा हुआ, शैतानी बंदिश से
कहां गया नूर-ए-इलाही, तलबगार हूं मैं
सूकून अता कर दो मौला, गुनाहगार हूं मैं
कहां गया नूर-ए-इलाही, तलबगार हूं मैं
सूकून अता कर दो मौला, गुनाहगार हूं मैं