रिश्तो में कडवाहट इस कदर आ गई
सामने होकर भी तू सामने नही होता
झूठी वो तेरी कसमे वादे सब बेशुमार
यकीन करता रहा मैं जिन पर हर बार
नासमझ था शायद या था मैं अनजान
जो भी हो पर कीमत तो अब चुकानी है
कांच कि तरह नाजुक है रिश्तो कि डोर
एक बार जो टूटे फिर जोड्ना आसां नही
गर जुड भी जाये एंठन बाकी रहती सदा
थक हार के आखिर समझोता कर लिया
शायद तकदीर का लिखा था यह फसाना
सामने होकर भी तू सामने नही होता
झूठी वो तेरी कसमे वादे सब बेशुमार
यकीन करता रहा मैं जिन पर हर बार
नासमझ था शायद या था मैं अनजान
जो भी हो पर कीमत तो अब चुकानी है
कांच कि तरह नाजुक है रिश्तो कि डोर
एक बार जो टूटे फिर जोड्ना आसां नही
गर जुड भी जाये एंठन बाकी रहती सदा
थक हार के आखिर समझोता कर लिया
शायद तकदीर का लिखा था यह फसाना