जाने क्यूं पापा से कह नही पाता हूँ
मेरे वुजूद में नेकदिली के निशां उनसे है
बाहर से सख्त दिखे पर अंदर से नरम
सादगी से संवारा है उन्होने परिवार
माँ से हमेशा हर बात खुल कर कही
जाने क्यूं पापा से कह नही पाता हूँ
मुश्किले हँसकर यूंही झेलते रहे है
चेहरे पर शिकन ना आने देते
सबको मुहब्बत बस बाँटते रहते
दर्द में भी उफ तक ना करते
मैं उनके पास रहना चाहता हूँ
जाने क्यूं पापा से कह नही पाता हूँ
साफदिल इतने लोग मिसाल देते है
कई दफ़ा हैरान हो जाता हूं
अपनी कुछ अच्छाईयों पर
फिर ख्याल आता है
मुझमें ये आदत उनसे है
मौला से बस इतनी सी दुआ है
तौफ़िक मुझे मिल जाये अब
सदा उन्हे खुश रखने की
बहुत प्यार मै उनसे करता हूं
जाने क्यूं पापा से कह नही पाता हूँ