खुद से रूठा हूँ मैं, जाने क्या हुआ मुझे
ख़ुशी में अब, लबों पर हंसी आती नहीं
कुछ तो कमी है शायद, मेरे जीने में
अनजानी राहें, ले जा रही जाने कहाँ
बनावटी दुनिया, ना भाये अब मुझको
सपनो के जहाँ में, मेरा दिल है लगता
परवाह नहीं अब, झूठे रस्मो रिवाज कि
सच्चा यार मिल जाये, दुआ है ये रब से
मिलते ही जिसके, ख़ुशी से ये मन झूमे
सुहाना वो सफ़र, फिर कभी खत्म ना हो
उस पल को जीकर, ज़िंदा रहू मैं हर पल
हर दिन मिले वहाँ, सुनहरी यादों का कल
दर्द कि इन्तेहा में, रूह मेरी धुल सी गई
अल्फाज़ो के भीतर, अधूरापन छुपा बेठा
वक़्त से टूटा हूँ मैं, ऐसा क्या हुआ मुझे
ख्वाबो में अब, आँखों पर नमी नहीं
खुद से रूठा हूँ मैं, जाने क्या हुआ मुझे
ख़ुशी में अब, लबों पर हंसी आती नहीं