नाराज है सब अल्फ़ाज मुझसे
रूठे हैं एहसास भी अब खुदसे
काग़ज पर उतरने से डरने लगे
खौफ़ कि स्याही जम सी गई
कल्ब की सुर्ख़ दिवारो पर
खुरचने से दर्द उभर आता
किससे कहूं ना कह पाया जो
गर ना कहूं तो फिर केसे रहू
परेशान है बहुत रुह मेरी
बस आजादी कि तलबगार
मौला मिला दे उस शख्स से
ज़रिया हो जो तेरी रहमत का
नवाज़ दे अर्श-ए-नूर से
कूबूल कर अब ये दुआ मेरी.