……….ये दिल……….
फिर से करने लगा है दिल कुछ हसीं खताए
जिसे भुलाना चाहू अक्सर वो पल याद आये
इश्क पे जोर है किसका कोई ना बता सका
किसे याद रखे ये दिल और किसे भूल जाये
………यादें……..
आज फिर पुरानी यादें सामने आई है
दिल कह रहा यूँही बस इक तन्हाई है
लम्हा है कोई जिसे तू भूल आया था
बरसो पहले कही यूँही छोड़ आया था
यादें लहरों की तरह होती है
कब तक इनसे दूर भागेगा
इक दिन तो वो भी आयेगा
खुद से जब रूबरू हो जायेगा
दिल कहता है काश वो दिन वापस आ जाये
मगर यादे समंदर किनारे रेत की मानिंद है
जो वक़्त के दरिया में बस घुलती जा रही है……इरफ़ान
…….सर्द सुबह की कहानी……..
सर्द सुबह की बस यही है कहानी
कहीं धुंध तो कहीं एहसास बर्फानी
सर्दियों में देर तक यूँ सोते रहना
हटाकर रजाई फिर से ओढ़ लेना
उठकर पीते है इक चाय कि प्याली
साथ में होती गर्म परांठो कि थाली
माँ के हाथो में तो जादू ही रहता
खाते रहते सब ना कोई ना कहता
नहाने से सबका दिल जो घबराता
मुंह धोके ही काश काम चल जाता
कुछ भी कहो पर फ़िज़ा है रूमानी
छत पे धूप अब लगती है सुहानी
सर्द सुबह की बस यही है कहानी
कहीं धुंध तो कहीं एहसास बर्फानी………इरफ़ान
…………..”तालाब”………….
सीने पे जमाये रखता था, कभी जो साहिल को
वोह तालाब इक बूंद के लिए आज तरस रहा है
सूखा सा बेज़ान पड़ा रहता है, अब यूँ अकेले में
जेसे कोई बूढा आदमी, घर के कोने में लेटा है
बारिश तो ऐसी रूठी, जेसे हो वो ख़फ़ा महबूबा
जुदाई में अश्क़ बहाता, ज़मी उन्हें सोख लेती
तपिश से उनकी फिर, धीरे धीरे उधड़ती जाती
इक दौर वो भी था, जब तालाब पूरा भर जाता
पानी की लहरे, हिचकोलों से किनारे धो जाती
किनारे भी जो बाहें खोले, छपाकों से यूँ मिलते
जेसे खेल रहा वहा कोई, मासूम शरारती बच्चा
रंग बिरंगी मछलिया, गोद में उछलती कूदती
पीपल का पेड़ किनारे पर, लहरो को निहारता
शाखो से जिसकी, बच्चे पानी में छलांग लगाते
तैरती हुई मछलिया, मगर उनसे डरती नहीं है
उन्हें बस यक़ीं है, इनका दिल पानी सा साफ़ है
तालाब यह सब देख कर, बड़ा खुश होता रहता
मगर उसे क्या मालूम, इंसान खुदगर्ज़ है बड़ा
तरक्की की चाहत में, क़ुदरत को भूल रहा है
पेड़ो के झुरमुट हटाकर, ऊँची इमारते बना रहा
क़ुदरत ने रहमत के दरवाजे, अब बंद कर दिये
बारिश हुई बादलो में क़ैद, कभी जो बरसती थी
ज़मीं पर बहकर वो, तालाब को ज़िंदा करती थी
बाँहों में थामे रखता था, कभी जो पूरे सैलाब को
वोह तालाब इक बूंद के लिए आज तरस रहा है …….इरफ़ान
………..माँ…………
ना दौलत से मिली है ना शोहरत में खिली है
रहमत है कही तो बस माँ कि दुआ में मिली है
बुलंद मर्तबा है इतना के आसमां भी झुक जाये
कदमो तले रहती है उसके जन्नत कि फ़िज़ाए
माँ कि गोद सा ठिकाना इस जहाँ में और कहा
पाता है खुदको महफूज़ ऐसा आशियाँ और कहा
जाता है घर से दूर तो फ़िक्र उसे हर पल सताए
वापस आने तक तेरे मांगे सलामती कि दुआए
मुश्किल में जब होता है तो होंसला वो ही दिलाती
हर परेशानी खुद झेलकर चेहरे पर हंसी ले आती
पापा को जब गुस्सा आये माँ ही तो तुझे बचाये
प्यारी बातो से ध्यान उनका कही और बंटाये
लिखने बेठा तारीफ तो लफ्ज़ ही ना मिल पाये
लिख सकू क़तरा भी खुद पर मुझे नाज़ हो जाये
ना इबादत से मिली है ना हसरत में खिली है
जन्नत है कही तो बस माँ के कदमो में मिली है
ना दौलत से मिली है ना शोहरत में खिली है
रहमत है कही तो बस माँ कि दुआ में मिली है ……इरफ़ान
………….खुशबू………..
खुशबू यहाँ जो अब रहती है
जाने क्या वो मुझसे कहती है
कभी यहाँ कभी वहाँ बिखरी
आख़िर में खुद ही महकती है
बेआवाज़ इक हक़ीक़त है यह
हर मौसम में जो गुलज़ार रहती है
महसूस कर रहा हूँ जब से इसे
मुझे यूँ मुझमे ज़िंदा रखती है
लफ्ज़ो में बयाँ ना हो सकी कभी
सिर्फ एहसास है इक रूह में बसती है
खुशबू यहाँ जो अब रहती है
जाने क्या वो मुझसे कहती है……….इरफ़ान
………बारिश…….
आसमाँ के दरमियाँ ज़मीं की सिफारिश हो रही है
लगता है फिर से आज वोह पहली बारिश हो रही है
बूंदो में उसकी रवां होता है ज़िन्दगी का बसेरा
डूबकर जिसमे यूँ महक उठता है उजला सवेरा
काली घटाओ में क़ैद हुई फ़िज़ा की हसीं ख्वाहिश
टकराई वोह पहाड़ो से तो होने लगी फिर बारिश
भीगकर इसमें जो होने लगा है मदहोश बदन
रोम रोम खिल उठा जब चली वहाँ ठंडी पवन
ज़मीं पर हर तरफ बिझी है इक सब्ज़ चादर
आगोश में जिसके सिमट रहे शाम-ओ-सहर
सोहबत में इसकी खिलती है फूलों की क्यारी
पहली बारिश में जवां होती है इश्क़ की ख़ुमारी
बारगाह-ऐ-ख़ुदा में रहमत की गुज़ारिश हो रही है
तरबतर कर दे जो रूह को वो नवाज़िश हो रही है
आसमाँ के दरमियाँ ज़मीं की सिफारिश हो रही है
लगता है फिर से आज वोह पहली बारिश हो रही है ……..इरफ़ान
………… ख़ामोशी……………
हर पल तुम्हे यूँ देखना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था
मगर सुन ना सके तुम मेरी उस ख़ामोशी को
करता हूँ दीदार तेरा ख्वाबो में, तन्हा रातो में
मगर देख ना सके तुम मेरी क्यूँ सरग़ोशी को
अपने फ़ितूर को अब लफ्ज़ो में है ढाल दिया
मगर पढ़ ना सके तुम मेरी इक रुबाई को
सिर्फ मुहब्बत है तुमसे कोई मज़ाक ना था
मगर छू ना सके तुम मेरी उस मदहोशी को
हर पल तुम्हे जो चाहना महज़ इश्क़ ही था
मगर समझ ना सके तुम मेरी उस ख़ुमारी को
हर पल तुम्हे यूँ देखना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था
मगर सुन ना सके तुम मेरी उस ख़ामोशी को……….इरफ़ान
…………ख़ुशी………..
ख़ुशी कि तलाश में, जाने क्यूँ भटक रहा
कभी यहाँ कभी वहाँ, आँखे मूंदे चल रहा
दौड़ती हुई ज़िन्दगी में, कुछ देर तो ठहर
मिलेंगे जहा तुझे, बेवजह फिर कई सवाल
सवाल कुछ अजनबी से, करते है जो हैरान
खोल गिरह मन कि. ना हो अब तू परेशान
नज़र आता है यहाँ, उम्मीदो का इक सवेरा
दामन में रहता है जिसके, खुशियो का बसेरा
हर लम्हे में है ख़ुशी, फिर जरा तू गौर कर
खुद में बसी है ख़ुशी, बस जरा महसूस कर …….इरफ़ान
………रात……….
आहिस्ता यूँही दिन गुजर गया
फिर रात आई इठलाते बलखाते
सितारो से सजी चादर ओढ़कर
सर्द चांदनी में आँचल भिगोकर
दिन भर कि थकान मिटाती
गोद में अपनी लोरी सुनाती
आग़ोश में है बेइंतहा सुकून
वोह रात फिर भी सोती नहीं है
खामोश बेठी है दुल्हन कि तरह
बहुत कुछ है शायद कहना इसे
मगर किससे कहे सब सो गये
ख्वाबो के इक जहाँ में खो गये
सबने लिया ज़ायका नींद का
बेबसी रात कि मगर ना जानी
देती दर्द-ओ-ग़म से निज़ात
वोह रात फिर भी सोती नहीं है
चाँद तो है आशिक़ कि तरह
सारी रात एकटक निहारता
रात चाँदनी में फिर ऐसे घुली
यूँ ज़मीं से पहली बारिश मिली
बदनाम हुई ये सदा अँधेरे से
हैरान दुनिया कि तंगदिली से
देती है हर दफा सबको राहत
वोह रात फिर भी सोती नहीं है…….इरफ़ान
………..ग़ुज़ारिश……….
तेरा ख्याल ही काफी है जीने के लिए
गर तुम मिल जाते तो क्या बात होती
वोह ग़ुज़ारिश मेरी अब तक है अधूरी
गर जवाब दे जाते तो क्या बात होती
तन्हा रातो में यहाँ हर लम्हा तुझे पुकारा
जो ख्वाबो में मिल जाते तो क्या बात होती
दिल को है यकीं सच्चा वोह इश्क़ मेरा
गर इकरार तुम कर जाते तो क्या बात होती
सुरमयी वो आँखें तेरी हर जगह मेने तलाशी
जो इत्तेफ़ाक़न ही दिख जाते तो क्या बात होती
हर कदम सहता रहा वक़्त के बेदर्द सितम
गर मरहम तुम बन जाते तो क्या बात होती
अल्फाज़ो में बयां कर रहा हूँ अपना फ़साना
जो शायरी तुम बन जाते तो क्या बात होती
शिकवा नहीं ये कोई सिर्फ है मेरी ग़ुज़ारिश
गर हमनवां तुम बन जाते तो क्या बात होती
तेरा ख्याल ही काफी है जीने के लिए
गर तुम मिल जाते तो क्या बात होती
वोह गुज़ारिश मेरी अब तक है अधूरी
गर जवाब दे जाते तो क्या बात होती ………इरफ़ान
चन्द अल्फाज़ मैंने कागज़ पर यूँही उड़ेले
आहिस्ता फिर नज़्म की शक्ल उभरती गई
मासूम बच्चे की तरह आँखे मूंदे हुए
मलमली सुबह आँचल में लपेटे हुए
लरजते हुए, काँपते हुए, शब में मचलते हुए
बेचैनी को महसूस कर रूह में बसती गई
नज़्म इक एहसास है बस, कागज़ पर उतरती गई…
पैदाइश होती हैं इसकी अनछुये ख़्याल से
दिल में उतरता हैं वो सुर्ख़ लहू की तरह
कैफ़ियत से लफ्ज़ को यूँ संवारता
बारिश में धुला हो जैसे पत्ता कोई
ख़्वाहिश से भरी हुई ख़्वाबों के जहां में
हसरतों से लबरेज़ दरिया सी बहती गई
नज़्म इक एहसास है बस, कागज़ पर उतरती गई…
होशवाले इसे हर्फ़ की नक्काशी कहते
उन्हें क्या खबर सरगोशी रहती इसमें
ज़हन से टपकते रहते गीले अल्फ़ाज़
स्याही के लिबास में ज़िन्दगी महकती
शरमाते हुए, घबराते हुए, इश्क़ में डूबते हुए
ज़ज्बात में भीगी अनकही बातें कहती गई
नज़्म इक एहसास है बस, कागज़ पर उतरती गई…