ज़िंदगी तुझ पे मेरा, अब इख़्तियार ना रहा
मैं मनाता ही रहा, तू रूठती चली गई
वक़्त के ये धारे, अब धुंधले होने लगे
एहसास कि नदी में, रेत से जमने लगे
मुसाफिर कई मिले, अनजान सफ़र में
हसरतो के आशियाँ, आँखों में लिए हुए
ऐतबार करना मगर, बहुत मुश्किल यहाँ
ज़ख्मी दिल अक्सर, सहमा सा रहता है
ज़िंदगी मुझको तेरा, बस इंतजार ही रहा
मैं पास आता रहा, तू दूर होती गई
छुप कर बेठी है, तू गर्दिशो में कहीं
कभी तो झांक इधर, मैं तन्हा खड़ा हूँ
सुना है कई रंगो से, मिलकर बनी है तू
मुझे भी दिखा कभी, सुनहरे सपने तेरे
ज़िंदगी तुझ पे मेरा, अब इख़्तियार ना रहा
मैं लिखता ही रहा, तू मिटाती चली गई ।।
#RockShayar
Ultimate sir
Shukriya