तेरा ख़याल ही काफी है जीने के लिए
गर तुम मिल जाते तो क्या बात होती
वो गुज़ारिश मेरी अब तक है अधूरी
गर जवाब दे जाते तो क्या बात होती
तन्हा रातो में यहाँ हर लम्हा पुकारा तुझे
जो ख़्वाबों में मिल जाते तो क्या बात होती
दिल को यक़ीं है सच्चा वो इश्क़ मेरा
गर इक़रार तुम कर जाते तो क्या बात होती
सुरमई वो आँखें तेरी हर जगह मेने तलाशी
जो इत्तेफ़ाकन ही दिख जाते तो क्या बात होती
हर कदम सहता रहा वक़्त के बेदर्द सितम
गर मरहम तुम बन जाते तो क्या बात होती
लफ़्ज़ों में बयां कर रहा हूँ अपना फ़साना
जो शायरी तुम बन जाते तो क्या बात होती
शिकवा नहीं ये कोई है बस इतनी गुज़ारिश
गर हमनवां तुम बन जाते तो क्या बात होती
तेरा ख़याल ही काफी है जीने के लिए
गर तुम मिल जाते तो क्या बात होती
वो गुज़ारिश मेरी अब तक है अधूरी
गर जवाब दे जाते तो क्या बात होती ।।
“आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ “
आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ
तुम्हारी वो इक तस्वीर मिली हैं
पुरानी अलमारी के दराज में रखी
छुपाया था जिसे मेने कभी किताब में
इस डर से कि कोई देख ना ले
या खुद देख कर याद में ना रोने लगू
रुखसती के वक़्त वादा किया था मेने
नहीं बिखरुंगा अब कभी तेरे ख़याल से
मगर ज्योंही कागज़ पर साया नज़र आया
वादा यूँ टूट गया जैसे कोई बिखरा कांच
बहुत कोशिश की हैं मेने
सख्त दिल बनने की यहाँ
फितरत जाने क्यूँ मगर बदलती नहीं
बस तुझे ही चाहती रहती हैं बेइंतेहा
कई दफा तेरे नाम को भी
अपने नाम से जोड़ता रहा हूँ मैं
तख़ल्लुस में भी तेरा शुमार कर लिया हैं
हयात में मगर फिर साथ तू क्यूँ नहीं हैं
शब् में गहरा सन्नाटा रहने लगा
मेरी तरह ये भी तन्हाई में जल रही हैं
शायद इसे वो नूर याद आ गया
जिसके लिए मैं कभी यूँ दीवाना था
जेसे बरसते मौसम का आवारा बादल
जब भी तुम मेरे आसपास होती थी
बारिश शुरू होने लग जाती
इशारा था वो कायनात का
मैं जिसे बखूबी समझ जाता
मगर तुम डरती थी बहुत
भीगने से नहीं, इश्क़ में डूबने से
अश्क़ यूँ रुख को नम कर रहे हैं
जेसे बारिश में छत से रिसता है पानी
बहुत रोया मैं उन तन्हा रातो में
जब तुम कही दूर चली गयी थी
और मुझे जरुरत थी हमसफ़र कि
हर नक्श में मेने तेरा चेहरा तलाशा
आज तक भी क्यूँ मुझे यकीं ना हो पाया
कि तुम तो जा चुके हो कब के दूर
मगर यह दिल अब भी कहता हैं
वो गुज़ारिश मेरी कभी तो पूरी होगी
आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ
शायद तेरी तस्वीर रूह में बसी हैं !!
“बस इतनी गुज़ारिश है तुमसे”
बस इतनी गुज़ारिश है तुमसे
तसव्वुर पर बन्दिशे ना लगाना
रूह को बेहद सूकूं मिलता है
जब तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
मगर ये जख्मी दिल डरता है
इसलिये लफ्ज़ो में बयां करता हूँ
थोङा ऐतबार करो मुझ पर
दोस्त हूँ मैं, कोई गैर नही
मुहब्बत हुई है, गुनाह तो नही
मेरे लिये, वोह एहसास हो तुम
महसूस करता हूँ, हर लम्हा जिसे
दूर होकर भी, मेरे पास हो तुम
कभी तो वो दिन भी आयेगा
जब मैं तुम्हे याद आउंगा बहुत
और तुम यूँ खामोश बैठी हुई
अल्फ़ाजों में ज़िन्दा पाओगी मुझे…
छलकते हुए तेरे अश्क़ों को, यूँ पीता चला जाऊ
तेरे लिए एक ज़िन्दगी और मैं, जीता चला जाऊ
मेरी हर इक सांस पर, नाम लिखा है सिर्फ तेरा
तेरे सारे ज़ख्मो को, बस यूँही सिलता चला जाऊ
दुनिया के रस्मो रिवाज़ की, परवाह नहीं है मुझे
तेरे लिए ही सारी हदें, बस मैं तोड़ता चला जाऊ
तुम साथ हो गर तो, हर मुश्किल आसान लगे
तेरे लिए ही खुशिया, बस मैं जोड़ता चला जाऊ
इत्तेफाक नहीं कोई, खुदा की मर्ज़ी है मुहब्बत
तेरे लिए ही हर सितम, बस मैं सहता चला जाऊ
वादियों के जहां में
रहती है वोह
जन्नत से आई
एक हूर लगती है
आवाज़ में तिलिस्म
अंदाज़ में शोखियां
बयां करू तो कैसे
लफ्ज़ भी ना मिलते
जब दीदार होता है
पलकों पर रहता है
हुस्न का इक बादल
कई दफ़ा जिसकी ठंडक
महसूस की है मेने
जब कभी लिखने बैंठा
शब की तन्हाई में
और ख्याल था दिल में
सुरमई उन निगाहो का
ख्वाबो के जहां में
मिलती है वोह
सितारों से आई
मद्धम रौशनी लगती है …..
चलो आज फिर एक, ख़्वाब ताबीर करे
वादियों का शहर हो, अज़नबी राहें लिए
पता ना चले जहाँ, कि जाना किधर है
अनजान रास्तों पे, बस चलते चले जाए
पलकों के आशियाने में, धीरे से सजाये
इश्क़ के फ़साने, यूँ बेनज़ीर अंदाज़ लिए
रूह के इस जूनून को, देखो कभी गौर से
इक़बाल-ए-ज़ुर्म भी है, इज़हार-ए-मुहब्बत भी है
इक अजब सुकून है, ख्यालो के जहाँ में
आओं कुछ देर बैठे, बस हाथों में हाथ लिए
चलो आज फिर एक, एहसास ज़िंदा करे
हयात का सफर हो, अनकही गुज़ारिश लिए …..To be continued…