लोग यहाँ सिर्फ फ़िल्म देखने नहीं आते हैं
वो यहाँ आते हैं
ज़िन्दगी को पर्दे पर साकार होते देखने
लोग यहाँ सिर्फ फ़िल्म देखने नहीं आते हैं
वो यहाँ आते हैं
ज़िन्दगी को पर्दे पर साकार होते देखने
बेशक़ीमती है ये किसी मुआवज़े की मोहताज नहीं
बयान कर सकू मैं शान ऐसे तो कोई अल्फ़ाज़ नहीं
इसकी क़ीमत लगाने की ज़ुर्रत न कर बैठना सियासतदारों
ये शहादत है तुम्हारा कोई सियासी तख़्त-ओ-ताज नहीं
ज़िन्दगी ने ली है ये जो मुख़्तसर सी झपकी,
ख़्वाब जैसी लगती है हर हक़ीक़त की हस्ती
हर चीज़ से फारिग़ हो गया
जब उसका आशिक हो गया
वो लेता रहा इम्तिहान मेरा
मैं देकर हाफ़िज़ हो गया
ज़िन्दगी का ये ऑफर है लिमिटेड
समटाइम शाइनी समटाइम ग्रे शेड
ऐवरीडे खुलते जाये जित्ते न्यू पिटारे
खुली आईज से देखो उत्ते व्यू नज़ारे
सरप्राइज है जित्ते साइज भी उत्ते
एज पर किस्मत है प्राइज भी उत्ते
जाॅय दी राइड विद ग़मग़ीन टाइड
फुल ऑन फील रखो टेंशन साइड
अप एन डाउन डे नाइट लाइफ डेथ
बुलशिट है सब रखो गर खुद पे फ़ेथ
साॅ ऑवरआल फंडा है बस यही
प्रजेंट में जियो है अर्जेंट बस यही
ज़िन्दगी का ये ऑफर है लिमिटेड
समटाइम शाइनी समटाइम ग्रे शेड ।।
#RockShayar
After successful completion of the Whole Brain Radio Therapy, now the Chemotherapy will be started on 11th February 2K19@BMCHRC, Jaipur under the supervision of renowned Medical Oncologist Dr. Naresh Somani.
It is the 3rd clinical process followed by the Surgical and Radiation Oncology. It is also known as Medical Oncology.
PAPA you must have to defeat CANCER again and again at every single stage.
अल्लाह आपको शिफ़ा-ए-क़ामिला अता करे…आमीन…Aameen
कभी गिरती है कभी संभलती है
ये ज़िंदगी तो बस यूँही चलती है
बाहें खोले बेबाक बहती है
न जाने कौनसी गली में रहती है
पता मिल जाये तो बताना मुझे
इसे कैसे जीते है सिखाना मुझे
कभी हँसती है कभी रोती है
ये ज़िंदगी तो बस यूँही चलती है
तरह-तरह के दौर दिखाती है
न जाने किसकी याद दिलाती है
याद करके जिसे आँखें भर आती हैं
अश्क़ों में उसी की बातें नज़र आती हैं
कभी गिरती है कभी संभलती है
ये ज़िंदगी तो बस यूँही चलती है।
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पहला सुख है Healthy काया
After that Pocket में माया
Life की Mythology का यह
Funda कुछ समझे तुम भाया?
साल में दो दिन वतन-वतन करने वालों
तुमको साड्डे वतन दा प्यार भरा सलाम
ज़रा ग़ौर से सुनना तुम देशप्रेमी लोग आज
वतन ने ख़ास तुम्हारे लिए भेजा है ये पैग़ाम
सुबह-सुबह जो तिरंगे वाली तीव्र लहर शुरू होती है
दोपहर आते-आते तो वो पूरी तरह दम तोड़ देती है
देशभक्ति वाले धांसू गीत गाकर और चंद लटके-झटके दिखाकर
बताओ तो तुम ये वतनपरस्ती का कौनसा नमूना पेश कर रहे हो?
ये जो मज़हब के नाम पर तुम लोग एक दूसरे को मार डालते हो
सच कहूं तो तुम मुझे नित नये कभी नहीं भरने वाले घाव देते हो
साल में दो दिन वतन-वतन करने वालों
तुमको साड्डे वतन दा है बस इत्ता ही कहणा
चाहे कुछ भी हो जाए
पर अपने अंदर इंसानियत को मरने ना देणा
चाहे कुछ भी हो जाए
पर अपने अंदर थोड़ी इंसानियत बचा के रखणा
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए जश्न मनाओ तुम
फिर चाहे मेरी शान में ख़ूब जोशीले नग़मे सुनाओ तुम
अगर मेरी कोई बात बुरी लगी तो बहुत अच्छी बात है
आख़िर वतन हूँ मैं तुम सबका नाम मेरा हिंदोस्तान है।
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अंदर से पूरी तरह से ख़ाली हो चुका हूँ
मांगना भूल चुका है जो मैं वो सवाली हो चुका हूँ
मेरी परछाई का पीछा करने वाले तुझे मायूस होना पड़ेगा
मैं अब वो दिन नहीं रहा रात काली हो चुका हूँ
वो जब डूबने लगते है मदद के लिए हमेशा हमको ही पुकारते है
और अगले ही पल बदले में एक बड़ा सा खंजर पीठ में उतारते है
न जाने कैसा दस्तूर है ये उनका जो अब तक समझ नहीं आया
के वक़्त रहते तो क़द्र करते नहीं और बाद में वक़्त-वक़्त पुकारते है
उसने हमदर्द बनके हर बार हज़ारों दर्द दिए
पुराने हो चले थे सो फिर से नए ज़ख़्म दिए
वो जानता था के मैं चुका नहीं पाउंगा कभी
उसने फिर भी मुझ को कर्ज़ पे कर्ज़ दिए
शिकवा भी क्या करे किसी और से हम यहां
जब ख़ुद अपने ही हकीम ने हम को मर्ज़ दिए
हम मरीज़-ए-इश्क़ दिलबर-दिलबर करते रहे
और दिलबर ने दिल खोलकर ख़ूब दर्द दिए
दर्द सहते-सहते जब मौत लाज़िम हो गई
तब जाकर ज़िंदगी ने आँखों में कुछ अश्क़ दिए।
काफी देर तक जब मैं अपनी डायरी में कुछ भी नहीं लिख पाया
तब मेरी वो डायरी खुद ही बोल उठी
आखिर किस ख़याल में डूबे हुए हो शायर
जिसने तुम्हें इतना परेशान कर रखा है
कि आज तुमसे एक अल्फ़ाज़ तक नहीं लिखा जा रहा है
अरे तुम तो वो हो जो कुछ ही देर में मेरा पूरा पन्ना भर दिया करते थे
तो फिर आज ऐसा क्या हो गया
जो तुम चाहकर भी मुझ पर कुछ नहीं लिख पा रहे हो
क्या तुम्हें याद हैं वो सारी नज़्में
जो तुमने लिखी थी किसी दौर में मुझमें
पाकर जिन्हें मैं अपने पन्नों पर
खुद को खुशनसीब समझने लग गई थी
तुम भले ही खुद को भूल गए हो आज
मगर मुझे याद है अब भी वो चेहरा तुम्हारा
जिस पर नज़्म लिखते वक़्त एक अलग ही शिद्दत नज़र आती थी
भले ही वो कुछ देर को आती थी, मगर अपना काम कर जाती थी
और फिर मैं उस नज़्म को कई दिनों तक
अपने दामन में समेटकर खुशियां मनाती थी
सुनो ना शायर, चाहे कोई समझे या न समझे
पर मैं तुम्हारे जज़्बात बख़ूबी समझती हूँ
तो ज्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं है
मैंने तुम्हारे वो सब अनलिखे अल्फ़ाज़
आज भी ठीक उसी तरह समझ लिए हैं
जैसे पहले समझ जाया करती थी
मुझे यक़ीन है कि तुम मुझे फिर से खुशनसीब ज़रूर बनाओगे
तब तक के लिए तुम बस मुझे अपने सिरहाने रखकर सो जाओ
और मेरे साथ मेरी दुनिया में चले आओ
सुनो मेरे साथ मेरी दुनिया में चले आओ…
कुछ राज़ हमने सिर्फ ख़ुद को ही बताये हैं
पता कोई पूछे तो कहना वक़्त के सताये हैं
तक़दीर का तिलिस्म भी देखो कितना अजीब है
वो आज खुद चलकर हमारे दर पे आये हैं
हमने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ख़ातिर में
आख़िर में लफ़्ज़ शातिर के मानी उन्हीं ने तो सिखाये हैं
वो अब रोज़ माफ़ी मांगते है, खुद से भी और मुझसे भी
ज़िन्दगी ने भी क्या-क्या मंज़र दिखलाये हैं
हमने तो उन्हें कब का माफ़ कर दिया
ये तो वक़्त की लौटकर आने वाली सदाये हैं
उस दौर को जब याद करते है तब यही याद आता है
के कुछ रिश्ते हमने बेवज़ह ही निभाये हैं
बड़ी मुश्किल से इस टूटे दिल को सहेज पाये हैं
पता कोई पूछे तो कहना वक़्त के सताये हैं…
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नींद गायब हो गई मेरी इन आँखों से
दिल ने जब आदाब कहा तेरी यादों से
बहुत दिन हो गए तेरा ख़्वाब नहीं आया
मुझको सुकून मिलता है तेरे ख़्वाबों से
तूने मुड़कर देखना भी गंवारा न समझा
मुझको शिकायत है तेरे उन वादों से
चलो इतना तो बता दो मुझे तुम
क्या मिटा पाई हो अपनी यादों से
जवाब देना न देना तुम्हारी मर्ज़ी है
मेरा तो सवाल है सिर्फ तेरी आँखों से।
सुना है कि हम ही नई सरकार बनाते हैं
चोर को हराके डाकू को जिताते हैं
सत्ता की कुर्सी पांच साल की लीज पर दे देते हैं
हालांकि पहले ही साल अपनी गलती मान लेते हैं
द्रुतगति से सिस्टम को कोसना शुरु कर देते हैं
और अगले चुनाव में फिर किसी मौसेरे को चुन लेते हैं
पब्लिक हैं भई आखिर पूरा लोकतंत्र चलाते हैं
सुना है कि हम ही नई सरकार बनाते हैं…
हमने कई सूरमाओं को धूल चटाई हैं
हमने कई नेताओं को नानी याद दिलाई हैं
मगर अब तक हमारी समझ में ये बात ना आई हैं
के इन नेताओं को चुनाव के वक़्त ही हमारी याद क्यों आई हैं
सुना है कि हम ही नई सरकार बनाते हैं
चोर को हराके डाकू को जिताते हैं
प्रदेश का फ्यूचर पांच साल के अनुबंध पर दे देते हैं
हालांकि पहले ही साल अपनी गलती मान लेते हैं
द्रुतगति से दूसरा विकल्प खोजना शुरु कर देते हैं
और अगले इलेक्शन में फिर किसी मौसेरे को चुन लेते हैं
सुना है कि हम ही नई सरकार बनाते हैं
चोर को हराके डाकू को जिताते हैं।
झूलती हुई शाख के उन पीले पत्तों की तरह है ये ज़िन्दगी
मुक़द्दर में जिनके एक दिन टूटकर ज़मीं पे गिरना लिखा है
देखिए एक शायर की ताजमहल से की गई अब तक की सबसे अनोखी और तल्ख़ गुफ़्तगू जिसने आखिर में खुद मुमताज की रूह को क़ब्र में छटपटाने और शायर में समाने पर मज़बूर कर दिया…
Emotional Love Poetry by RockShayar Irfan Ali Khan at Nojoto Open Mic Agra which was held on 30th September, 2018. Watch Heart Touching Hindi Poetry.
दर्द के सर्द मौसम में जब ज़िंदगी बग़ावत करती है
पश्मीना वो यादें तेरी मेरी रूह की हिफ़ाज़त करती है।
तू तो न जाने वादी के किस हिस्से में रहती है
ये ज़िंदगी तो अब तेरी तलाश से मोहब्बत करती है।
मिलेगी जो किसी मोड़ पर तो पूछूंगा ऐ ज़िंदगी
तू क्यूँ हर बात पर इतनी शिकायत करती है।
बहुत पसंद था न तुझे मेरे मोहब्बत करने का अंदाज़ वो
और मुझे ये बात के तू उस अंदाज़ से मोहब्बत करती है।
इत्तेफ़ाक़न ही सही पर इक मुलाक़ात तो हो कभी
बस इसीलिए तो आँखें तेरे ख़्वाब की हसरत करती है।
मालूम नहीं था मुझे दस्तूर तेरे फ़िरदौस का
के हूर जहां केवल फ़रिश्तों से मोहब्बत करती है।।
Hello, I feel very happy to announce that I have been nominated by StoryMirror for Author of the Year Awards – 2018. Now I need your support to win the title.
Please visit this link :
https://awards.storymirror.com/hindi/vote/
Go to my name (Irfan Ali Khan) and click on vote button.
You will have to login to StoryMirror to vote for me.
https://storymirror.com/…/q…/rockshayar-irfan-ali-khan/poems
सफेदपोश उड़ा रहे इक दूजे का मखौल है
लगता है शहर में चुनावी माहौल है
सियासती इस दौर में बहुत कुछ बदलने वाला है
आज है जो गली का गुंडा कल वो वज़ीर बनने वाला है
पंचवर्षीय ये योजना फिर से दोहराई जाएगी
बेचारे कर्मचारियों की इलेक्शन ड्यूटी लगाई जाएगी
ऐसी ड्यूटी से तो हर कर्मचारी को मुक्ति चाहिए
और जनता को तो बस भ्रष्टाचारी से मुक्ति चाहिए
ऐसे में मतदान के रूप में उम्मीद की नई किरण नज़र आती है
मगर नई सरकार बनते ही खुद अपने भरण-पोषण में जुट जाती है
हालांकि इलेक्शन कमीशन लगातार अपनी रेप्यूटेशन बनाए हुए है
मुद्दत से इस महान डेमोक्रेसी का डेकोरम मेंटेन किए हुए है
मगर अफसोस के पॉलिटिक्स को कुछ नेताओं ने गंदा किया
सत्ता को सट्टा समझकर उसे अपना पुश्तैनी धंधा बना लिया
पहले बैलट होता था अब ईवीएम का जमाना है
हर पार्टी का मूलमंत्र यही के बस पब्लिक को रिझाना है
अब देखना ये है कि जनता किसे चुनती है
शायद जो कमचोर है जनता उसे चुनती है
अपना अच्छा-बुरा जनता को खुद समझना चाहिए
इस बार तो ईवीम पर केवल नोटा ही दबना चाहिए
हो सकता है ये पंचवर्षीय फुटबॉल मैच यही खत्म हो जाएं
और शासन चलाने का कोई नया फॉर्मूला हाथ लग जाएं।
कोई तो अंदर है जो बाहर आने को छटपटा रहा है
शायद कोई परिन्दा है जो उड़ने को फड़फड़ा रहा है
पर कट चुके हैं सभी, पर सोच के पर बाक़ी हैं अभी
सोचकर यही वो परिन्दा गिरकर भी मुस्कुरा रहा है
एक दिन तो छूना ही है उसे, ये सारा नीला आसमां
फिलहाल तो वो ज़मीं पे अपने क़दम आज़्मा रहा है
क़ैद किया था जिसने उसे, अँधेरे इक कमरे में कभी
सुना है इन दिनों खुद को वो उसी कमरे में पा रहा है
किसी हादसे ने नहीं, उसे उसके घर ने बेघर किया
तभी वो परिन्दा साँझ ढले अब अपने घर नहीं जा रहा है…
Dedicate to Delicious Kashmiri Cuisine…
तेरे शहर की नून चाय सा दिखता है मेरा शहर
सुन तेरे गुलाबी गालों सा लगता है मेरा शहर
मिलने आओ न कभी तुम पहाड़ों से मैदान में
वादियों के जहान से मेरे दिल के रेगिस्तान में
दिल ने बनाया जिसे मोहब्बत के उस मक़ान में
शिद्दत से सजाया जिसे उस दावत-ए-वाज़वान में
शुरूआत में तुमको लज़ीज़ तबाक माज परोसूंगा
साथ में जिसके बीते लम्हों की बाकरखानी होगी
और फिर मैं तुमको इश्क़ का वो क़हवा पेश करूंगा
तन्हाई में जिसे मैंने चाँद के नूर से तैयार किया था
हालांकि यादों का यख़नी पुलाव भी बनकर कब से तैयार है
मगर ग़मों की गुश्ताबा करी एक अर्से से ज़ेहन पर सवार है
यक़ीनन कुछ जज़्बात अब भी सहमे हुए और ख़ामोेश हैं
पर कोई बात नहीं अभी हमारे पास रूहानी रोग़न जोश है
तो बताओ फिर कब आ रही हो मेरे शहर
अब तो मेरी नून चाय भी खत्म हो गई है
अब तो इस इंतज़ार को और इंतज़ार न बनाओ
अब तो बस आ ही जाओ सुनो तुम आ ही जाओ
वरना मैं तो फिर आ ही रहा हूँ इस बार तेरे उन पहाड़ों पे यार
देख ही लूंगा इस बार आख़िर ऐसा क्या है उन पहाड़ों के पार।
नून चाय – कश्मीरी चाय जो गुलाबी रंग की होती है
वाज़वान – कश्मीरी व्यंजनों में एक बहु-पाठ्यक्रम भोजन है
लज़ीज़ – स्वादिष्ट
तबाक माज – तले हुए मटन चॉप्स
बाकरखानी – एक मोटी मसालेदार रोटी
क़हवा – कश्मीरी कॉफ़ी
यख़नी – कश्मीरी पुलाव का एक अन्य रूप
गुश्ताबा करी – पारंपरिक कश्मीरी करी
रोग़न जोश – कश्मीरी मटन डिश
मुझको आजकल कहीं भी सुकून नहीं मिलता
लिखना तो चाहूँ लेकिन मज़्मून नहीं मिलता।
अभी कुछ और तड़पना होगा, कुछ और बरस
इतनी जल्दी तो किसी को जुनून नहीं मिलता।
गर जुड़ाव हो तो ज़मीन-ओ-आसमां के जैसा
दरमियाँ जिनके कहीं कोई सुतून नहीं मिलता।
आधी उम्र गुज़र गई, तब जाकर ये पता चला
के मेरे अपनों से मेरा ज़रा भी ख़ून नहीं मिलता।
तोड़ने पर मिले सज़ा, दिल जोड़ने पर मिले जज़ा
इस जहां में ऐसा तो कोई क़ानून नहीं मिलता।।
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मज़्मून – विषय, Subject
सुतून – खंभा, Pillar
जज़ा – अच्छे काम का बदला, Reward
कोई कमबख़्त कहता है कोई बदबख़्त कहता है
फ़क़त इक यार ही तो मुझ को दरख़्त कहता है।
उसने देखा है मुझ को शजर से पत्थर होते हुए
वो मेरे दर्द को छूकर उसे फिर नज़्म कहता है।
क़ैद हैं क़िस्से कई उसकी पथराई आँखों में
उसकी कहानी उसका हर इक अश्क़ कहता है।
छुपाएं थे मैंने कभी ज़ख़्म किसी जमाने में
ज़माना जिसे के गुज़रा हुआ वक़्त कहता है।
बिन बताएं वो बिन जताएं दर्द से राहत दिलाएं
इसीलिए तो हर शख़्स उसे हमदर्द कहता है।
फ़र्क़ नहीं पड़ता मुझे अब ज़माने के किसी ताने का
ज़माना तो हर ख़ुद्दार को ख़ुदग़र्ज़ कहता है।।
कमबख़्त/बदबख़्त – अभागा/Unfortunate
फ़क़त – केवल/Only
दरख़्त – पेड़/Tree
शजर – एक पेड़/ a tree
नज़्म – उर्दू में कविता का एक रूप/Poetry
अश्क़ – आँसू/Tears
ख़ुद्दार – स्वाभिमानी/self-respecting
ख़ुदग़र्ज़ – स्वार्थी/Selfish
बे-क़ुसूर को सज़ा सुनाई, गुनहगार को माफ़ किया
माशा अल्लाह ! आपने क्या ख़ूब इंसाफ़ किया।
मुंसिफ़ भी आपका, वकील भी आपका
हमने तो मानो अदालत आके ही गुनाह किया।
मिजाजपुर्सी को आने लगे हैं लोग आजकल
ग़मों ने हमको कुछ इस क़दर बीमार किया।
मुनाज़िर नहीं है वो, जो हर बात पर जीत जाएं
वो जीता इसलिए, क्योंकि उसने पीठ पर वार किया।
घबरा रहा है दिल ये, पिछले कुछ दिनों से बहुत
लगता है इसने फिर किसी पर ऐतबार किया।।
मुंसिफ़ – न्यायाधीश, Judge
मुनाज़िर – शास्त्रार्थ करने में दक्ष, तर्क-वितर्क में माहिर
मिजाजपुर्सी – बीमार का हालचाल पूछना
ऐतबार – भरोसा, विश्वास
ये कैसी तलाश है जो कभी पूरी नहीं होती
हरचीज़ को पाने की ज़िद ज़रूरी नहीं होती
बहुत कुछ सिखा देती है ज़िन्दगी
मोहब्बत करना किसी की मज़बूरी नहीं होती
भले ही दूर आसमानों में रहता है वो
गर दिल से मांगों दुआएं कैसे पूरी नहीं होती
कुछ तो कमी रही होगी दर्द के एहसास में
वरना ये कहानी अब तक अधूरी नहीं होती
उसने मुड़के देखना भी ज़रूरी ना समझा
जो देख पाती तो दरमियां आज ये दूरी नहीं होती।
मेरे अंदा़ज़ को अपना अंदाज़ बना लोगी
नज़रें मिलते ही अपना सब कुछ गंवा दोगी
एक ही मुलाक़ात काफ़ी है इस तज़ु्र्बे के लिए
क्योंकि उस मुलाक़ात के बाद तुम तुम ना रहोगी
हमें पिघलाने की ज़िद में खुद जल जाओगे
जलके हमारी तरह तुम भी राख बन जाओगे
यही सवाल हरबार क़दमों को रोक देता है
बिना तैयारी के बताओ तुम कहां तक जाओगे
जिस रोज़ ज़िंदगी से समझौता किया तुमने
खुद को भुलाके शख़्स कोई और बन जाओगे
बचपन की उस कहानी ने यही सबक सिखाया
लंबे सफ़र में धीरे चलो वरना थक जाओगे
किस बात का गुरूर है, जब बात ही इतनी है
के इस मिट्टी से बने हो इसी में मिल जाओगे
सुनो ऐ नादान परिंदों, हर उड़ान की यही दास्तान
लौटकर तुम शाम को अपने ही घर जाओगे।
जाने से पहले आखिरी बार मिलना ज़रूरी है
जाते-जाते उसका पलटकर देखना ज़रूरी है
वादा करने वाले, एक वादा तू खुद से ये कर
वादा करने से ज्यादा वादा निभाना ज़रूरी है
जब सारे आंसू खत्म हो गए तो पता ये चला
के थोड़ा पाने के लिए बहुत तड़पना ज़रूरी है
कीमत चुकानी पड़ती है हरएक चीज़ की यहां
मरहूम होने के लिए आपका मरना ज़रूरी है
ये दिल जब टूटा तब बस यही सदा सुनाई दी
के ग़ैरों के बजाय इस दिल पे यक़ीं करना ज़रूरी है
गर्दिश में हो गर सितारे, बस इतना याद रख प्यारे
सुबह की खातिर सूरज का ढलना ज़रूरी है।
#ObjectOrientedPoems(OOPs)
इस दुनिया में हर चीज़ बलपूर्वक बदलाव का विरोध करती हैं लेकिन बहुत कम चीज़ें ऐसी होती हैं, जो बल हटते ही पहले जैसी होती हैं पदार्थ का यही गुण तो Elasticity है रबर को देखकर हमें कला ये सीखनी है मगर Elasticity की भी अपनी एक Limit होती है क्योंकि हर किसी में इतनी सहनशक्ति नहीं होती है एक यंगमैन ने सबसे पहले इस बात का पता लगाया Stress और Strain का Ratio Young Modulus कहलाया Unit Area पर लगाएं गए Force को ही Stress कहते है जो कि आजकल हम लोग बहुत ज्यादा ही लेते हैं वही लंबाई में बदलाव को Strain कहते है और हिंदी में बोले तो इसे विकृति कहते है जो कि आजकल हम इंसानों की सोच में आई हुई हैं देखकर जिसे खुद हैवानियत भी घबराई हुई है हुक बाबू की माने तो Stress व Strain एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं Elasticity Constant है अनुपात तथा मात्रक को पास्कल कहते है हालात कैसे भी हो, अगर हम Elastic बन जाएं तो बबुआ साड्डी लाइफ भी Very Very Fantastic हो जाएं वादा है जी, अगला Topic More Than लाजवाब होगा मलाई की तरह लगेगी पढ़ाई, और मज़ा भी बेहिसाब होगा।
Woman writing in her diary at sunset
चमकीले दिन बड़ी जल्दी बीत जाते हैं रह रहकर बाद में बहुत याद आते हैं साथ चलती है सदा परछाई वक़्त की बीच-बीच में धूप के साये मुस्कुराते हैं बिना जिनके हर खुशी अधूरी हैं, साथ जिनका कि बेहद ज़रूरी हैं अँधेरे में यार सितारों से जगमगाते हैं ना कोई फ़िकर रहती है, ना कोई परेशानी वहां ज़ुनून के पौधे जिस जगह लहलहाते हैं खुशबू आती हैं, हरवक़्त अपने अंदर से रूहानियत के फूल सारा आलम महकाते हैं चाहे जितनी हवा भरो, चाहे जितनी दवा करो मन के ये गुब्बारे फटाक से फूट जाते हैं मज़बूरी में साथ निभाते हैं, मज़दूरी में कुछ नहीं पाते हैं दूर जाने के बाद दोस्त बहुत याद आते हैं।
आँखों से अश्क़ अब आज़ाद होना चाहते हैं
शायद! वो और कहीं आबाद होना चाहते हैं।
हमें तो उनकी हरइक साँस, है अब तक याद
और वो है के बीती हुई बात होना चाहते हैं।
बहुत वक़्त गुज़रा, फिर भी ज़ख्म नहीं भरे
लगता है अधूरा इक एहसास होना चाहते हैं।
तरबतर कर दे जो, रूह और रूहदार दोनों को
बंजर के लिए हम वो बरसात होना चाहते हैं।
रोते हुए इस बार भी, आंसू नहीं छलके उसके
किसी और की अब वो फ़र्याद होना चाहते हैं।
वो गलती से भी हमें, याद नहीं करते कभी
हम है के उनके लिए बर्बाद होना चाहते हैं।।
होश गंवाने को तैयार हुए बैठे है खानाबदोश मन का शिकार हुए बैठे है चादर चढ़ाने ही सही, पर आओ कभी इंतज़ार में आपके मज़ार हुए बैठे है ये हुनर सीखना इतना आसां नहीं हुज़ूर बिन बादल देखो मल्हार हुए बैठे है एक आप ही हो, जो क़रार के तलबगार हो वरना हम तो कब से यूं बेक़रार हुए बैठे है वज़ह थी इसकी भी, वज़ह बहुत बड़ी बेवज़ह तो नहीं हम ख़ुद्दार हुए बैठे है तुमने शायद ग़ौर नहीं किया इस बारे में कभी मुद्दत से मेरे यार इंतज़ार हुए बैठे है।
हमने अपने वज़ूद को कुछ यूं बचा रक्खा है
जैसे बरसती हुई बारिश में चराग़ जला रक्खा है
गज़ब हो जाएगा, जिस दिन अश्क़ों का सागर सूख जाएगा
बस इसीलिए तो सीने में एक दरिया दबा रक्खा है
पथराई आँखों को पढ़ने की गुस्ताख़ी ना कर बैठना
हमने अपनी आँखों में इक आफ़ताब छुपा रक्खा है
कई सिलसिले बाक़ी हैं, अभी कई जलजले बाक़ी हैं
तभी तो हज़ार रातोंं से हमने नींद को जगा रक्खा है
तुमने अभी हमारी मेहमाननवाज़ी देखी ही कहां है?
आओ कभी हवेली पे हमने मौत को दावत पे बुला रक्खा है।
मेरा लहजा समझने वाले खुद को भूल जाते हैं
कई दिनों तक खुद में वो मुझको ही पाते हैं
हालांकि मैं ये सब जानबूझकर नहीं करता हूं
मैं उनका दिल बहलाता हूं, वो मेरे ज़ख़्म सहलाते हैं
इंसानी खोपड़ी भी क्या कमाल की चीज है
दिमाग को सुरक्षित रखती, ये वो चीज है
मात्र 29 हड्डियों से अपुन की खुपड़ियां बनी हैं
8 कपाल से, 14 चेहरे से, 6 कान से जुड़ी हैं
कपाल में ही तो छुपा असली माल है
साला 1400 ग्राम का दिमाग़, मचाता कितना बवाल है
खरबों न्यूरॉन्स थॉट वाली बोट चलाते हैं
बैकबॉन के ज़रिए ब्रेन को बाहुबली बनाते हैं
तीन मुख्य हिस्सों में बंटा हुआ है अपना भेजा
अगला, पिछला, मंझला, कुछ ऐसा है अपना भेजा
नर्वस सिस्टम है इसका कर्ता-धर्ता
दिमाग़ तो है बस भावनाओं का भर्ता
अगला भेजा अगेन तीन तिगाड़े में बंट जाता हैं
सेरीब्रम, थैलेमस, हाइपोथैलेमस कहलाता हैं
सोच का सागर सेरीब्रम से ही तो बहता है
थैलेमस तो बस ज़िंदगीभर दर्द ही सहता है
हाइपोथैलेमस में ही तो सब जज़्बात जवां होते हैं
गुस्सा, नफ़रत, इश्क़, मोहब्बत इसी में पनपते हैं
दिल तो बेचारा बरसों से, फोकट में ही बदनाम है
मज़नू, शायर, पागल, दीवाना, यहीं से पहचान हैं
मंझला हिस्सा हमें देखने-सुनने की शक्ति देता है
सेरीब्रल पेंडिकल दिमाग़ी तार स्पाइनल कॉर्ड से जोड़ता है
पिछले वाले हिस्से के, हैं जो दो अनमोल रतन
सेरीबेलम व मेड्यूला ऑब्लांगेटा, कहते जिन्हें सब जन
सेरीबेलम है वो खिलाड़ी, जो बॉडी का बैलेंस बनाता है
और मेड्यूला अपने इशारों पर दिल को धड़काता है
दारू पीने पर साड्डा सेरीबेलम बहक जाता है
इसी वज़ह से तो शराबी लड़खड़ाकर चलता है
सोडियम, पौटेशियम, और कैल्शियम की मदद से
इमोशन सब मोशन करते हैं इन तीनों की वज़ह से
ईईजी की मदद से दिमाग़ के तेवर पढ़े जाते हैं
ख़यालों में अक्सर ज़ेहन के ज़ेवर गढ़े जाते हैं
लाइफ का अक्खा लोचा चंद हॉर्मोंस की वज़ह से हैं
ऑक्सीटॉसिन ही तो रोमांस की रियल वज़ह है
ज़िंदगी में ज़ुनून का होना बहुत ही ज़रूरी है
साथ हो गर डोपामाइन का तो लक्ष्य से ना कोई दूरी है
कई सदमे सहता हैं, क्रेडिट जिनका के दिल लेता हैं
सदियों से बदनाम है दिमाग़, फिर भी खुश रहता है
तो बीड़ू कैसा लगा अपुन का माइंड ब्लोइंग माइंड
माइंड मत करना, क्योंकि ये है शायरी विद साइंस।
उसने मुझेे रोते हुए देख लिया
वो मासूम बच्चा था, सो सहम गया
मैंने भी अश्क़ों के सागर में काग़ज़ की कश्ती चला दी
वो भोला बचपन था, सो बहल गया
मेरी शायरी को समझने की कोशिश ना करना
ये एक समंदर है, इसमें अंदर तक उतरना
और ज्यादा कुछ नहीं बस इतना याद रखना
मैं लिखते वक़्त तड़पा था, तुम पढ़ते वक़्त तड़पना
तेरी बेरुख़ी का शुक्रगुज़ार हूँ मैं
खुद अपना ही ज़िंदा मज़ार हूँ मैं….
बेज़ुबान परिंदों की ज़ुबान समझता हूँ मैं अपने दिल को खुला आसमान समझता हूँ जिस राह पर चलने से कतराते हैं सब मैं उस राह को अपने लिए आसान समझता हूँ
होश गंवाने को यूं बेक़रार हुए बैठे हैं
खानाबदोश मन का शिकार हुए बैठे है
चादर चढ़ाने ही सही, पर आओ कभी
इंतज़ार में आपके मज़ार हुए बैठे है
ये हुनर सीखना इतना आसान नहीं
बिन बादल देखो मल्हार हुए बैठे है
एक आप ही हो, जो क़रार के तलबगार हो
हम तो कब से यूं बेक़रार हुए बैठे है
वज़ह रही थी, इसकी भी बहुत बड़ी वज़ह
बेवज़ह तो नहीं हम ख़ुद्दार हुए बैठे है
तुमने शायद ग़ौर नहीं किया इस बारे में कभी
मुद्दत से मेरे यार इंतज़ार हुए बैठे है
उसने भूलने की लाख कोशिश की हमें
मगर हम भी याद थे सो याद आते रहे
ज़ख्म देकर ख़ैरियत पूछते हैं
वो हमसे हमारी हैसियत पूछते हैं
दूरी बना लेते हैं उन लोगों से हम
जो दिल तोड़के दिल की क़ैफ़ियत पूछते हैं।